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भणियं कुमरेण तओ जीवंतो ताव इण्हि मुक्को सि ।
मोत्तूण मज्झ देसं ठाएयव्वं तुमे पाव! ।।३३।। संस्कृत छाया :
भणितं कुमारेण ततो जीवन् तावदिदानीं मुक्तोऽसि ।
मुक्त्वा मम देशं स्थातव्यं त्वया पाप! ।।३३।। गुजराती अनुवाद :
त्यारे कुमारे कहयुं, 'हे पापी हमणा तने जीवतो छोडूं छु तारे मारा देशने छोड़ीने जदूं। हिन्दी अनुवाद :
तब कुमार ने कहा, हे पापी ! अभी मैं तुम्हें जीवित छोड़ रहा हूँ। तू हमारे देश को छोड़कर जा। गाहा :
इय भणिओ सो नट्ठो गंतूणं ताहि दूर-देसम्मि ।
भिल्ल-जणाइन्नाए अवडिओ भिल्ल-पल्लीए ।। ३४।। संस्कृत छाया :
इति भणितः स नष्टो गत्वा तदा दूरदेशे।
भिल्लजनाकीर्णायामवस्थिता भिल्लपल्लयाम्।।३४।। गुजराती अनुवाद :
आ प्रमाणे कहवायेलो कपिल ध्यागीने दूर देश मां भील लोकोथी व्याप्त धीलपल्ली मां गयो अने रह्यो। हिन्दी अनुवाद :
ऐसा कहे जाने पर कपिल भाग कर दूरदेश में भील लोगों से व्याप्त भीलपल्ली में गया और वहीं रहने लगा। गाहा :
अह अन्नया य पउमो पुत्तं अहिसिंचिऊण रज्जम्मि । जुवराइणा समेओ पव्वइओ गुरु-समीवम्मि ।।३५।।