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संस्कृत छाया :
उत्पन्नः स देवो जातश्च क्रमेण दारकस्ततः । धनवाहन इति नाम विहितं तस्योचित-समये।।५७।। वर्धमानश्च क्रमेण प्राप्तोऽथ यौवनं जनानन्दम् ।
अभिसिञ्ज्य तं राज्ये जातः श्रमणः पिता तस्य ।। ५८।। गुजराती अनुवाद :
उत्पन्न थयेलो ते देवनं त्यां पुत्र छपे उचित समये धनवाहन एवं नाम कराव्यु। क्रमथी वधता यौवन मां आवेला तेने राज्य पर अभिषेक करी ने पिताजीरा दीक्षा लीधी। हिन्दी अनुवाद :
उत्पन्न हुए उस देव के पुत्र रूप में उसका उचित समय आने पर धनवाहन नामकरण हुआ। क्रम से उम्र बढ़ने पर युवावस्था में आने पर उसे राजगद्दी पर अभिषेक कर पिता ने दीक्षा ले ली।
गाहा :
सोवि बहु-पुव्व-लक्खे रज्जं परिवालिऊण संबुद्धो ।
नरवाहणं तु पुत्तं रज्जे ठविकण पव्वइओ ।।५९।। संस्कृत छाया :
सोऽपि बहुपूर्वलक्षाणि राज्यं परिपाल्य सम्बुद्धः ।
नरवाहनं तु पुत्रं राज्ये स्थापयित्वा प्रव्रजितः ।।५९।। गुजराती अनुवाद :
ते धनवाहने पण लाखो पूर्व सुधी राज्य संस्थालीने बोध पामी ने नरवाहन ने राज्य आपीने दीक्षा लीधी। हिन्दी अनुवाद :
__वह धनवाहन भी लाखों पूर्व समय तक राज्य संभालने के बाद बोधि प्राप्त कर नरवाहन को राज्य देकर अपने दीक्षा ले लिया। गाहा :
भह! विहुप्पह! सो हं विहरतो अज्ज इह पुरे पत्तो । अह एग-राइयाए ठिओ य पडिमाए अह एत्थ ।।६।।