________________
संस्कृत छाया :
रौद्र-ध्यानोपगतो मृत्वा गतो द्वितीय-पृथिव्याम् । मुन्यपि निरतिचारं श्रामण्यं कृत्वा बहुकालम् ।।४९।। कालं कृत्वा विधिना द्वावपि सौधर्म-नाम-कल्पे ।।
उत्पन्नौ शुभपुण्यात् (सुखपूर्णी) अप्सरा-गणसङ्कुलविमाने ।।५०।। युग्मम्।। गुजराती अनुवाद :
रौद्रध्यानथी मरीने कपिलनां जीव बीजी नारकी मां गयो अने मुनि भगवंतों घणो काल निरतिचार संयम पाळी ने विधिपूर्वक काल धर्म पामी सौधर्मा देवलोक मां शुधब्याव थी खूबज अप्सरावाळा देव विमान मां उत्पन्न थया। हिन्दी अनुवाद :
रौद्र ध्यान पूर्वक मरकर कपिल का जीव नरक में गया। और मुनि भगवंत निरतिचार संयम तथा विधिपूर्वक शरीर धर्म काल प्राप्त कर सौधर्म देवलोक में शुमभाव से अत्यधिक अप्सराओं वाले देव विमान में उत्पन्न हुए। गाहा :
तत्तो य पउम जीवो सागरमेगं तु आउयं तत्थ । अणुहविऊणिह दीवे एरवए विजय-नयरीए ।। ५१।। धणभूइ-नामगस्स ओ जाओ तणओ सुधम्म-नामोत्ति ।
काऊण य सामन्नं उप्पन्नो बीय-कप्पम्मि ।।५२।। संस्कृत छाया :
ततश्च पद्मजीवः सागरमेकन्तु आयुस्तत्र । अनुभूयेह द्वीपे ऐरावते विजय-नगर्याम् ।।५१।। धनभूति-नामकस्य ओ जातस्तनयः सुधर्मनामेति ।
कृत्वा च श्रामण्य-मुत्पन्नो द्वितीय-कल्पे ।।५२।। (युग्मम्) गुजराती अनुवाद :
आ चाजु पद्मराजनो जीव आयुष्प पूरकटी आ जंबुद्धीपमा सेरावत क्षेत्रमा विजयनगर मां धनभूति ना पुत्र सुधर्म नामे जन्म्या त्यां साधु पणु स्वीकारीने बीजा देव लोकमां उत्पन्न थयो।