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गाहा :
ता कवडेणं केणवि वइरस्संतं करेमि इण्हिपि ।
इय चिंतिऊण वंदइ ते मुणिणो परम विणएण ।। ४० ।।
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संस्कृत छाया :
तावत् कपटेन केनापि वैरस्यान्तं करोमीदानीमपि ।
इति चिन्तयित्वा वन्दते तौ मुनी परम विनयेन ।। ४० ।।
गुजराती अनुवाद :
तेथी कोईपण रीते कपट करीने पण हुं वेरनो बदलो लऊ ओम विचारी ने परम विनयपूर्वक तेणे बंने मुनि ने वन्दन कर्यं ।
हिन्दी अनुवाद :
इसलिए किसी भी प्रकार से छल कर मैं अपनी दुश्मनी का बदला लूंगा। ऐसा विचार कर उसने दोनों मुनियों की विनयपूर्वक वन्दना की।
गाहा :
नीया य निजे गेहे विस मीसं भत्त- पाणयं दिनं । भणिया य विणय- पुवं भयवं! एत्थेव भुंजेह ।। ४१ ।।
संस्कृत छाया :
नीतौ च निजेगेहे विषमिश्रं भक्तपानकं दत्तम् ।
भणितौ च विनय पूर्वं भगवन् (तौ?) अत्रैव भुञ्जेथाम् ।। ४१ ।। अत्रैव
गुजराती अनुवाद :
अने पोताना घर मां लई जईने झेरवाळा अन्न पान वहोराव्या अने विनय पूर्वक कह्युं 'भगवंत तमे अहिं वापरो ।
हिन्दी अनुवाद :
और अपने घर ले जाकर जहर युक्त अन्नपान कराया और विनयपूर्वक कहा कि 'भगवन्' आप यहीं भोजन ग्रहण करें।
गाहा :
अद्धाण- गमण- खिन्ना निव्वियणे एत्थ एग - देसम्म ।
भुंजिय वीसमिडं तो पभाय- काले वएज्जाह ।।४२।।