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संस्कृत छाया :
अध्वानगमनखिनौ निर्विजनेऽत्रैकदेशे ।
भुङ्क्त्वा विश्रम्य ततः प्रभात काले व्रजतम् ।। ४२ ।।
गुजराती अनुवाद :
मार्गना विहारना श्रमथी थाकेला बने जणा अकान्त स्थान मां वापरीने विश्राम करी सवारे पधारो ।
हिन्दी अनुवाद :
उसने कहा कि मार्ग में विहार से आप दोनों (थक गए होंगे इसलिए ) यहीं एकान्त स्थान में खा कर विश्राम करके सुबह चले जाइएगा।
गाहा :
एवं भणिया तेणं सुह- भावा वीसमित्तु खणमेगं । सज्झायं काऊणं पारद्धा भोयणं काऊं ।। ४३ ।। संस्कृत छाया :
एवं भणितौ तेन शुभभावौ विश्रम्य क्षणमेकम् । स्वाध्यायं कृत्वा प्रारब्धौ भोजनं कर्तुम् ।। ४३ ।।
गुजराती अनुवाद :
आवुं कहवायेला शुभभाववाळा ते चंने मुनिओ थोड़ो आराम करीने स्वाध्याय करीने आहार वापरवानुं शुरू कर्यु ।
हिन्दी अनुवाद :
ऐसा कहे जाने पर शुभभाव वाले दोनों मुनि थोड़ा आराम कर, करने के बाद आहार लेना प्रारम्भ किया।
गाहा :
संनिहिय- देवयाए मुणि- अणुकंपाए तयं विसं हरियं । भोत्तूण तओ दोन्निवि सज्झायं काउमारद्वा ।। ४४ । ।
संस्कृत छाया :
सन्निहित- देवतया मुन्यनुकम्पया तं विषं हृतम् ।
भुक्त्वा ततो द्वावपि स्वाध्यायं कर्तुमारब्यौ ।। ४४ ।।
स्वाध्याय
गुजराती अनुवाद :
नजीकमा रहेला देवता वड़े ते मुनिओ ऊपर भक्तिथी झेर दूर करायुं
अने ते ने मुनिओ वापरीने स्वाध्याय करवा लाग्या ।