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पार्श्वनाथ विद्यापीठ समाचार : 39 उनके विषय-वस्तु का सम्यक् विवेचन किया। डॉ० पाण्डेय ने आगमों के प्राचीन एवं वर्तमान वर्गीकरण का उल्लेख करते हुए अंग, उपांग, मूलसूत्र, छेदसूत्र, प्रकीर्णक और चूलिका सूत्रों का विशद् विवेचन किया। उन्होंने विभिन्न जैन सम्प्रदायों में मान्य आगमों की संख्या का सकारण विवचेन करते हुए आगमों की भाषा एवं उनकी चूर्णि, भाष्य एवं टीकाओं का भी उल्लेख किया।
६. अनेकान्तवाद : यह व्याख्यान प्रो० अशोक कुमार जैन, अध्यक्ष, जैन-बौद्ध दर्शन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा दिया गया। प्रो० जैन ने कहा कि अनेकान्तवाद जैन दर्शन का केन्द्रीयभूत सिद्धान्त है, जो वस्तु को अनन्तधर्मात्मक मानता है। उन्होंने अनेकान्तवाद का महत्त्व बताते हुए कहा कि अनेकान्तिक दृष्टि विरोधों का समन्वय है । इस दृष्टि से हम समाज में व्याप्त विभिन्न धर्मों की परस्पर असहिष्णुता को समाप्त कर सकते हैं।
७. गुणस्थान : यह व्याख्यान भी प्रो० अशोक कुमार जैन द्वारा ही दिया गया। प्रो० जैन ने आध्यात्मिक विकास में गुणस्थान के महत्त्व को रेखांकित करते हु चौदह गुणस्थानों का सविस्तार उल्लेख करते हुए भारतीय दर्शन में प्राप्त इसके समतुल्य सिद्धान्तों तथा गुणस्थानं सम्बन्धी विपुल साहित्य को भी रेखांकित किया।
८. बौद्ध सम्प्रदाय : यह व्याख्यान प्रो० प्रद्युम्न दूबे, अध्यक्ष, पालि एवं बौद्ध अध्ययन विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा दिया गया। प्रो० दूबे ने बताया कि सर्वप्रथम संघ एक था, कालान्तर में स्थविरवाद एवं महासांघिक दो भेद हुए। पुन: स्थविर के १२ और कालान्तर में १८ भेद हुए । इसी प्रकार महासांघिक के दो भेद हुए- एकव्वोहारिक और गोकुलिक । इस प्रकार प्रो० दूबे ने अपने व्याख्यान में बौद्ध सम्प्रदाय के भेदों-प्रभेदों, उनके संस्थापकों तथा सम्बन्धित साहित्य का कालक्रमानुसार विशद् विवेचन किया।
९. जैन ज्ञानमीमांसा एवं प्रमाण विचार : यह व्याख्यान संस्थान के रिसर्च एसोसिएट डॉ० राहुल कुमार सिंह द्वारा दिया गया। डॉ० सिंह ने मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान रूप पंचज्ञान का विशद् विवेचन करते हुए ज्ञान को जीव का लक्षण बताया। उन्होंने सम्यक् ज्ञान को प्रमाण बताते हुए प्रमाण के प्रत्यक्ष और परोक्ष दो मुख्य भेदों का भी उल्लेख किया। पुनः प्रत्यक्ष के सांव्यवहारिक और पारमार्थिक दो भेदों का विवेचन करते हुए अवधि, मन:पर्यय और केवल को पारमार्थिक तथा मति एवं श्रुत को सांव्यवहारिक बताया। इसी क्रम में उन्होंने परोक्ष के अन्तर्गत स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान एवं आगम का भी उल्लेख किया।