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पार्श्वनाथ विद्यापीठ समाचार : 43 २४. दक्षिण भारत में जैन धर्म : यह व्याख्यान डॉ० नवीन कुमार श्रीवास्तव, संयुक्त निदेशक, इन्टरनेशनल स्कूल फार जैन स्टडीज, नई दिल्ली द्वारा दिया गया। डॉ० श्रीवास्तव ने अपने व्याख्यान में ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर दक्षिण भारत में जैन धर्म के पलायन के कारणों का विवेचन करते हुए वहाँ जैन धर्म को प्राप्त राजकीय संरक्षण के क्रम में कदम्ब, गंग, पल्लव, चालुक्य एवं राष्ट्रकूट शासकों के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने व्याख्यान में जैन धर्म के दक्षिण भारत में स्थित प्रमुख तीर्थस्थलों, दक्षिण भारत में जैन आचार्यों की परम्परा एवं जैन साहित्य का भी विस्तृत उल्लेख किया। २५. जैन स्थापत्य एवं गुफाएँ : यह व्याख्यान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रा०भा०३० सं० एवं पुरातत्त्व विभाग के पूर्व आचार्य प्रो० हरिहर सिंह द्वारा दिया गया। प्रो० सिंह ने भारत में बनायी गयी ‘संरचनात्मक एवं शैलीकृत' इमारतों की विशेषताओं एवं अन्तर का विवेचन करते हुए चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा पटना में निर्मित पत्थर के महलों, नागार्जुन एवं बराबर की सर्वप्राचीन गुफाओं, राजगृह में प्राप्त दो जैन गुफाओं-उदयगिरि तथा खण्डगिरि में खारवेल के परिजनों द्वारा निर्मित जैन गुफाओं, जूनागढ़ की श्रृंखलाबद्ध गुफाओं, बादामी, अहिरोली और एलोरा की जैन गुफाओं की विशेषताओं, निर्माताओं, निर्माण के उद्देश्यों एवं प्राप्त अभिलेखों पर पर्याप्त प्रकाश डाला। २६. भारत के संरचनात्मक जैन मन्दिर - आबू के विशेष सन्दर्भ में : यह व्याख्यान भी प्रो० हरिहर सिंह द्वारा ही दिया गया। प्रो० सिंह ने जैन मन्दिरों की सामान्य विशेषताओं को विवेचित करते हुए संरचनात्मक जैन मन्दिरों के विवेचन के क्रम में आबू के जैन मन्दिरों के स्थापत्य और कला का विवेचन करते हुए गुजरात के प्रथम सोलंकी शासक भीमदेव प्रथम के मंत्री विमलशाह द्वारा निर्मित मन्दिर तथा सोलंकी नरेश भीमदेव द्वितीय के मंत्री तेजपाल द्वारा निर्मित मन्दिरों का उल्लेख करते हुए इन मन्दिरों को जैन मन्दिरों में प्राचीनतम एवं जैन धर्म की पूजन पद्धति के अनुकूल बताया। २७. जैन परम्परा का इतिहास : यह व्याख्यान भी डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय द्वारा दिया गया। डॉ० पाण्डेय ने जैन परम्परां के इतिहास को बताते हुए ऋषभदेव से महावीर सहित २४ तीर्थंकरों की परम्परा एवं ६३ शलाकापुरुषों का सविस्तार उल्लेख किया। डॉ० पाण्डेय ने ऋषभ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर की ऐतिहासिकता व जैन धर्म में संघ भेद के कारणों का उल्लेख करते हुए चतुर्विध संघ, उनके आचार तथा गणधर, गौतम, जम्बू स्वामी से प्रारम्भ कर भद्रबाहु, स्थूलभद्र