________________
गाहा :
जेणेसो पाव-मई जीविय-ववरोवणम्मि उज्जुत्तो? ।
तो भणइ मुणी निसुणसु जह वेरं आसि अन्न-भवे ।।१७।। संस्कृत छाया :
येनैष पापमतिर्जीवित-व्यपरोपणे उद्युक्तः? ।
ततो भणति मुनि निःशृणु यथा वैरमासीदन्यभवे ।।१७।। गुजराती अनुवाद :
के जेथी ते पापबुद्धि वालो आपनो जीव लेवा माटे आव्यो? त्यारे केवली मुनिए कह्यु के बीजा भवनो ओनो वेर हतो ते सांधणो। हिन्दी अनुवाद :
कि जिससे पापबुद्धि वाला आपका जीव लेने के लिए आया। तब केवली मुनि ने कहा कि यह इसका पिछले जन्म का वैर था, वह सुनो। गाहा :
घायइ-संड-विदेहे चंपा नामेण आसि वर-नयरी ।
तीए पउमो राया जुवराया समरकेउत्ति ।।१८।। संस्कृत छाया :
घातकी खण्ड-विदेहे चम्पा नामाऽऽसीत् वरनगरी ।
तस्यां पनो राजा युवराजः समरकेतुरिति ।।१८।। गुजराती अनुवाद :
धातकी खंड ना विदेहक्षेत्र मां चम्पापुरी नामनी नगीमां पद्म राजा तथा तेनो नानोध्याई समरकेतु नामनो युवराज हतो। हिन्दी अनुवाद :
धातकी खंड के विदेह क्षेत्र में चम्पापुरी नामक नगरी के पद्म राजा तथा उसका छोटा भाई समरकेतु नामक एक युवराज था। गाहा :
जिण-वयण-भावियप्पा सहोयरा दोवि नेह-संजुत्ता । पालेंति देस-विरइं रज्ज-धुरं तह य नीईए ।।१९।।