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पार्श्वनाथ विद्यापीठ समाचार : 41 एवं व्यावहारिक उपयोगिता को उद्घाटित किया तथा सप्तभंगी के रूप में इसके वचन विन्यासों का सोदाहरण विवेचन किया। १५. गौतम बुद्ध पूर्व बुद्ध परम्परा : यह व्याख्यान संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो० महेश्वरी प्रसाद द्वारा दिया गया। प्रो० प्रसाद ने त्रिपिटक आदि बौद्ध साहित्य में वर्णित गौतम बुद्ध पूर्व बुद्ध परम्परा का उल्लेख करते हुए अट्ठकथाओं में वर्णित गौतम बुद्ध पूर्व २४ बुद्धों एवं उनके जीवनी पर प्रकाश डाला। इस सम्बन्ध में प्रो० प्रसाद ने चीनी यात्री फाह्यान एवं जैन ग्रन्थ ऋषिभासित का उल्लेख करते हुए संस्कृत एवं पालि साहित्य में प्राप्त अन्तिम छ: बुद्धों (मानुषी बुद्ध) के नाम, जन्म स्थान और इनके वृक्ष का भी उल्लेख किया। १६. बौद्ध परम्परा का ऐतिहासिक विकास : यह व्याख्यान प्रो० सीताराम दुबे पूर्व अध्यक्ष, प्रा०भा०इ०सं०एवं पुरातत्त्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा दिया गया। प्रो० दूबे ने गौतम बुद्ध पूर्व २४ बुद्धों का विवेचन करते हुए गौतम बुद्ध एवं उनके बाद की परम्परा का सम्यक् विवेचन किया। उन्होंने तीनों बौद्ध संगीतियों का उल्लेख करते हए बौद्ध धर्म को प्राप्त राजकीय संरक्षण के विवेचन के क्रम में अशोक, कनिष्क और कुषाण के योगदान पर विशद् प्रकाश डाला। इस क्रम में प्रो० दुबे ने बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय विभाजन एवं उसकी आचार्य परम्परा का सविस्तार उल्लेख किया। १७. लेश्या सिद्धान्त : यह व्याख्यान भी डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय द्वारा दिया गया। डॉ० पाण्डेय ने लेश्या को मानव की मनोवृत्तियों के रूप में रंग के माध्यम से व्याख्यायित करते हुए उसके विविध स्तरों के रूप में कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कपोत लेश्या, पद्मा लेश्या, तेजो लेश्या एवं शुक्ल लेश्या का सविस्तार सोदाहरण उल्लेख किया तथा मनोविज्ञान से उसके सम्बन्ध को दर्शाते हुए चेतना के विभिन्न स्तरों का विवेचन किया। १८. जैन कोश-साहित्य : यह व्याख्यान संस्थान के पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ० ओम प्रकाश सिंह द्वारा दिया गया। उन्होंने कोश की परिभाषा एवं महत्त्व को रेखांकित करते हुए 'शब्द कोश' एवं विषय कोश' रूप द्विविध कोशों का विवेचन किया। पुनः भाषा के आधार पर कोशों का वर्गीकरण करते हुए संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी भाषा सहित अन्य भाषाओं के भी जैन कोशों के रचनाकार, रचनाकाल तथा विषयवस्तु का उल्लेख किया। १९. बौद्ध न्याय : यह व्याख्यान प्रो० अभिमन्यु सिंह, पूर्व आचार्य, दर्शन एवं धर्म विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा दिया गया। प्रो० सिंह ने बौद्ध