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आचार्य हरिभद्रसूरि प्रणीत उपदेशपद : एक अध्ययन : २९ तत्त्वों से सम्पृक्त रहता है। इतिवृत्त, चरित्र आदि के रहने पर भी प्रधानतः बुद्धि चमत्कार ही व्यक्त होता है।
औत्पत्तिकी बद्धि 'गोल' पद के अन्तर्गत कहा है कि किसी बालक की नाक में खेलते-खेलते लाख की एक गोली चली गयी। जब बालक के पिता को पता लगा तो उसने एक सुनार को बुलाया। सुनार ने सावधानीपूर्वक लोहे की गरम सलाई नाक में डाल कर गोली तोड़ दी फिर धीरे से सलाई निकाली और पानी में डालकर ठण्डी कर दी। पुन: उस ठण्डी सलाई से नाक के अन्दर की गोली बाहर निकाल दी और वह बालक स्वस्थ हो गया।२८
वैनयिकी बुद्धि के अन्तर्गत निमित्त विद्या, अर्थशास्त्र, चित्रकला, लेखन, गणित, अश्व, कूप, गर्दभ, अगद (विष) परीक्षा, गणिका तथा अंक एवं लिपि ज्ञान से सम्बन्धित अनेक महत्त्वपूर्ण बातें कथानकों सहित दी गयी हैं।२९ उपदेशपदवृत्ति में अट्ठारह प्रकार की लिपियों का उल्लेख विशेष महत्त्वपूर्ण है। इन लिपियों के नाम इस प्रकार हैंहंसलिपि, भूतलिपि, यक्षी, राक्षसी, उड्डी, यवनी, फुडुक्की, कीडी, दविडी, सिंधविया, मालविणी, नटी, नागरी, लाटलिपि, पारसी, अनिमित्ता, चाणक्यी और मूलदेवी।२०
खेल-खेल में लिपि विद्या सिखाने के विषय में एक आख्यान है कि किसी राजा ने अपने पुत्र को लिपि सिखाने के लिए किसी उपाध्याय के साथ रखा; किन्तु अनुशासनहीनतावश वह लिपि सीखने में उत्साहित नहीं था और बालक खेल में ही मस्त रहता। उपाध्याय भी सिखाने में लापरवाही करते। किन्तु बाद में राजा के भय से उपाध्याय ने खड़िया, मिट्टी तथा उसकी गोलियों के माध्यम से खेल-खेल में भूमि, पत्थर आदि पर लिख-लिख कर और खड़िया मिट्टी के अक्षरों के आकार बनाकर उसे सिखाया। इससे वह शीघ्र ही लिपि विद्या सीख गया।३१
_ 'शत्रुता' शीर्षक कथा में वररुचि और शकटाल इन दोनों बुद्धिजीवियों की शत्रुता का अंकन किया गया है। वररुचि ने अपनी चालाकी द्वारा शकटाल को मरवा दिया। शकटाल के पुत्र क्षेपक ने वररुचि से बदला चुकाया। कथा में आद्यन्त दांव-पेंच का व्यापार निहित है।३२
कर्मजा बुद्धि के अन्तर्गत भी अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। इसी में तन्तुवाय, रथकार, कान्दविक, कुम्भकार, चित्रकार, मृतपिण्ड चित्रादि ज्ञान-सम्बन्धी विवरण हैं।३३
पारिणामिकी बुद्धि के आख्यानों में अभयकुमार, काष्ठक श्रेष्ठि, श्रेणिक राजसुत नन्दिषेण, चिलातीपुत्र, चाणक्य-चन्द्रगुप्त, स्थूलिभद्र आचार्य, वज्रस्वामी, गौतमस्वामी, चण्डकौशिक, नारद-पर्वत आदि के आख्यान तथा नारी चरित्रों में रति सुन्दरी (गाथा ६९७), बुद्धिसुन्दरी (गाथा ७०३), गुणसुन्दरी (गाथा-७१३), ऋद्धिसुन्दरी (गाथा ७०८), नृपपत्नी (गाथा ८९१) तथा देवदत्ता आदि के आख्यान ऐतिहासिक दृष्टि
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