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६६ : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर २००२ हुआ था, अत: खरतरगच्छ की पट्टावली में स्वाभाविक रूप से इसकी उत्पत्ति की चर्चा मिलती है जिसके अनुसार वि०सं० १२०४/ईस्वी सन् ११४८ में जिनशेखरसूरि से खरतरगच्छ की इस शाखा का प्रादुर्भाव हुआ।
अध्ययन की सुविधा के लिए सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है।
१. जयन्तविजयकाव्य' - यह रुद्रपल्लीयगच्छ के आचार्य अभयदेवसूरि (द्वितीय) द्वारा वि.सं. १२७८/ईस्वी सन् १२२२ में रची गयी कृति है। इसकी प्रशस्ति में स्वगच्छ का उल्लेख किये बिना ग्रन्थकार ने अपनी लम्बी गुरु-परम्परा तथा रचनाकाल आदि का उल्लेख किया है। इसकी प्रशस्तिगत गुर्णावली इस प्रकार है
वर्धमानसूरि
जिनेश्वरसूरि
अभयदेवसूरि (प्रथम) नवाङ्गीवृत्तिकार
जिनवल्लभसूरि
जिनशेखरसूरि
पद्मचन्द्रसूरि
विजयचन्द्रसूरि
अभयदेवसूरि (द्वितीय) वि.सं. १२७८/ई.सन् १२२२ में जयन्तविजयकाव्य
के रचनाकार २. गौतमपृच्छावृत्ति-- छह हजार गाथाओं में रचित यह कृति अभयदेवसूरि (द्वितीय) के पट्टधर देवभद्रसूरि के शिष्य श्रीतिलकसूरि की रचना है। इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा तथा अपनी शिष्य सन्तति आदि का भी विवरण दिया है, जो निम्नानुसार है----
जिनेश्वरसूरि
अभयदेवसूरि (प्रथम) नवाङ्गीवृत्तिकार ...
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