________________
१२० : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर २००२ हैं वहाँ जैन छात्रावास एवं बोर्डिंग सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। यहाँ जैन विद्यार्थियों को ही मुफ्त आवासीय सुविधाएँ दी जाती हैं। जो विद्यार्थी इनमें निवास करते हैं वे किसी भी विद्यालय या विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने हेतु स्वतन्त्र होते हैं; किन्तु इनको जैनधर्म-सम्बन्धी शिक्षा भी प्राप्त करना अनिवार्य होता है। इसमें प्रतिदिन मन्दिर जाना एवं रात्रि भोजन का त्याग आवश्यक है।१२
___ जो विद्यार्थी शिक्षा का खर्च वहन करने में असमर्थ होते हैं उनके लिए जैन संस्थाओं द्वारा छात्रवृत्ति एवं ऋण देने का प्रावधान भी है। इसके लिए एक शैक्षणिक फण्ड की व्यवस्था होती है जिसके अन्तर्गत गरीब विद्यार्थियों को आर्थिक सहायता दी जाती है। दात्रवृत्ति देते समय यह ध्यान रखा जाता है कि विद्यार्थी जैन ज्ञाति का और साथ ही धार्मिक रुचि वाला भी हो। ये संस्थाएँ गरीब व अनाथ बच्चों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। ये संस्थाएँ कई प्रकार की होती हैं एक वे जो सिर्फ दिगम्बर जैनों के लिए हैं दूसरी श्वेताम्बर जैनों हेतु एवं कुछ ऐसी भी होती हैं जो सभी जातियों के विद्यार्थियों को सहायता प्रदान करती हैं। ऋण लेने वाले विद्यार्थियों को यह सुविधा प्रदान की जाती है कि अपनी शिक्षा समाप्ति के पश्चात् वे थोड़ी-थोड़ी किस्तों में ऋण की राशि चुका सकें।१३ जैन समाज के उत्थान हेतु स्थापित संस्थाएँ
जैन समाज के उत्थान हेतु अनेक जैन संस्थाएँ जैनों द्वारा स्थापित की गयी हैं। ये संस्थाएँ सामान्यतः दो प्रकार की हैं- प्रथम धर्म पर आधारित संस्थाएँ, दूसरीज्ञाति विशेष से सम्बन्धित संस्थाएँ। धर्म पर आधारित सम्पूर्ण दिगम्बर समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों में भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी आदि प्रमुख हैं। जातीय संगठनों से सम्बन्धित संस्थाओं में खण्डेलवाल जैन महासभा, सेतवाल जैन महासभा, गोलापुर जैन महासभा आदि हैं।१४
श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा ..२०वीं शताब्दी में दिगम्बर जैन समाज ने अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखने
के लिए अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा का गठन किया। इसका मुख्य उद्देश्य जैन समाज में नवचेतना जागृत करना तथा पूरे समाज में अशिक्षा, अन्धविश्वास, बालविवाह जैसी कुरीति को समाप्त करना है।५ अखिल भारतीय दिगम्बर जैन परिषद्
इसकी स्थापना २६ जनवरी १९२३ को दिल्ली में की गयी। जैन-ग्रन्थों के प्रकाशन तथा जनगणना में स्वयं को जैन लिखवाने के कार्यों में परिषद् ने महत्त्वपूर्ण - योगदान दिया है। इन्होंने सम्पूर्ण समाज में अपना सन्देश प्रसारित करने हेतु 'वीर'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org