________________
१६२ : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर/२००२ के विशिष्ट व्यक्ति उपस्थित रहे। अपने प्रवचन में चन्दनामती माताजी ने आज हो रहे शोधकार्यों के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हम जो भी शोध करें वह परम्परा की मर्यादा में हो। ऐसा कोई शोध हम न करें जो कि हमारी मान्यता एवं अस्तित्त्व को ही नकार दे। पार्श्वनाथ विद्यापीठ में किये जा रहे शोधकार्यों के प्रति प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने इस संस्था के निरन्तर वृद्धि की कामना की। इस अवसर पर उन्होंने माता ज्ञानमती जी द्वारा रचित साहित्य भेंट में देने की घोषणा की। क्षुल्लक श्रीमोतीसागरजी ने भी अपने आशीर्वचन में संस्था के प्रति शुभाशीष प्रदान किया। पूज्य गणिनी माता ज्ञानमती जी ने अपने उद्बोधन में शोध के सम्बन्ध में विशेष जागरूक होकर निष्पक्ष भाव से कार्य करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि आज राजनीति को धर्म से अलग रखने की बात कही जाती है, जबकि राजनीति से धर्म को अलग नहीं अपितु धर्म से राजनीति को अलग रखने का प्रयास होना चाहिए। इस अवसर पर विद्यापीठ की ओर से प्रकाशित तत्त्वार्थसूत्र-व्याख्याकार पं० सुखलाल जी संघवी- नामक ग्रन्थ भी उन्हें भेंट किया गया। इस अवसर पर विद्यापीठ के निदेशक प्रो० महेश्वरी प्रसाद जी ने कहा आज से १० वर्ष पूर्व मैने माताजी से वाराणसी पधारने का जो निवेदन किया था, वह आज साकार हो उठा और माताजी आज ससंघ विद्यापीठ में विराजमान हैं। इसी दिन आहार के पश्चात् अपराह्न ३ बजे माताजी ससंघ वाराणसी नगर के अन्य जिनालयों के दर्शनार्थ रवाना हो गयीं; किन्तु यहाँ उपस्थित सभी लोगों पर स्थायी रूप से अपने व्यक्तित्व एवं विद्वत्ता का अमिट प्रभाव छोड़ गयीं।
अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन में पार्श्वनाथ विद्यापीठ की
शोध-छात्रा पुरस्कृत पार्श्वनाथ विद्यापीठ के लिए यह अत्यन्त गौरव की बात है कि पुरी, उड़ीसा में आयोजित अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन के ४१वें अधिवेशन में दिनांक १३-१५ दिसम्बर को वहाँ जैन-विभाग के अन्तर्गत विद्यापीठ की शोध-छात्रा कु. मधुलिका सिंह द्वारा प्रस्तुत शोध आलेख जैनाचार्यों का छन्दशास्त्र को योगदान को सर्वश्रेष्ठ आलेख घोषित कर साढ़े
चार हजार रुपये के मुनि पुण्यविजय स्मृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ज्ञातव्य है कि कु० मधुलिका ने विद्यापीठ के वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ० अशोक कुमार सिंह के निर्देशन में आचार्य हेमचन्द्रकृत छन्दोनुशासन का आलोचनात्मक अध्ययन विषय पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शोधप्रबन्ध को परीक्षार्थ प्रस्तुत कर दिया है। कु० मधुलिका को उनकी इस अकादमिक उपलब्धि पर विद्यापीठ परिवार की ओर से हार्दिक बधाई।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org