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१७२ : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर/२००२ के लिए भी यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी है। ग्रन्थ की साज-सज्जा भी आकर्षक और मुद्रण त्रुटिरहित है।
साध्वी सिद्धान्तरसा श्री चन्द्रप्रभ की श्रेष्ठ कहानियाँ : सम्पादक- महोपाध्याय ललितप्रभसागर; प्रकाशक- जितयशा फाउण्डेशन, ९-सी, एस्प्लानेड रो ईस्ट, कोलकाता-७०००६९; द्वितीय संस्करण २००१; आकार- डिमाई, पृष्ठ ४५९०; मूल्य- १५/
जीवन और दर्शन के नीरस सत्य को आकर्षक रूप में प्रस्तुत करना ही कहानी है और यही प्रस्तुति हमें "श्री चन्द्रप्रभ की श्रेष्ठ कहानियाँ' नामक पुस्तक में दृष्टिगत होती है। प्रस्तुत संकलन में मुनिश्री चन्द्रप्रभ ने कहानी के माध्यम से समाज के आध्यात्मिक मूल्यों को गति देने का सफल प्रयास किया है। कहानियों का शीर्षक आकर्षक एवं कहानी की मुख्य घटना से सम्बद्ध है। इसमें कुल छ: कहानियों का संकलन किया गया है जिसमें "कूल दो, प्रवाह एक", "ज्योति मिट्टी के दिए की", "मुक्त हो अतिमुक्त', प्रतीकात्मक प्रतीत होती है वहाँ “बलिदान' कहानी में प्रत्येक घटना का पात्र के साथ सामञ्जस्य बैठा है। बाहुबल/आत्मबल शीर्षक कहानी के अन्तर्द्वन्द्व को उजागर करता है तो कांक्षा से निष्कांक्षा की ओर शीर्षक घटनाक्रम की विपरीतता को आदि से अन्त तक प्रकाश में लाता है। प्रत्येक कहानी की भाषा-शैली विशिष्ट है जिसमें वर्णनात्मक, विश्लेषणात्मक तथा संवाद शैली का प्रभावी ढंग से प्रयोग हुआ है। पुस्तक के द्वितीय संस्करण के प्रकाशन से ही सिद्ध होता है कि ये कहानियाँ काफी लोकप्रिय हैं। कुल मिलाकर "श्री चन्द्रप्रभ की श्रेष्ठ कहानियाँ" पठनीय है।
राघवेन्द्र पाण्डेय फिर कोई मुक्त हो : लेखक- मुनिश्री चन्द्रप्रभ; प्रकाशक- पूर्वोक्त; प्रथम संस्करण २००२; आकार- डिमाई; पृष्ठ ९०; मूल्य- १५/
. “फिर कोई मुक्त हो' मुनिश्री चन्द्रप्रभ के प्रवचन का संकलन है जिसमें समय-समय पर दिये गये छ: प्रवचनों को उद्धृत किया गया है। प्राय: प्रवचन दार्शनिक एवं कठिन शब्दों से युक्त होते हैं जिसे सामान्यजन के लिए आत्मसात करना दुरूह कार्य होता है। श्रीचन्द्रप्रभ ने इन प्रवचनों में इतनी सरल भाषा का प्रयोग किया जिससे वे सहज ही मन में बैठ जाते हैं। प्रवचनों में प्रेरणादायी प्रसंग, उनका सरल एवं सुबोध भाषा में विश्लेषण हमें जीवन-दर्शन की मौलिकता का दर्शन कराता है। गुरु के आत्मज्ञान की लौ जब हृदय को स्पर्श करती है तभी चेतना में अभीप्सा एवं जागरण प्रज्वलित होता है। मुनि श्रीचन्द्रप्रभ के ये प्रवचन लोगों को सहज ही प्रभावित करेंगे और वे इसे आत्मसात कर लाभान्वित होंगे।
राघवेन्द्र पाण्डेय (शोधछात्र)
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