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१७४ : श्रमण / जुलाई-दिसम्बर / २००२
ढंग से दृष्टान्त के माध्यम से मुनिश्री ने अपने प्रवचनों द्वारा समझाने का प्रयास किया है। प्रथम प्रवचन 'मनुष्य दुःखी क्यों है ?' के माध्यम से जीवन को सार्थक बनाने की प्रेरणा दी गयी है। प्रत्येक प्रवचन महावीर के वाणी से ओत-प्रोत एवं सारगर्भित है । 'धर्म आखिर क्या है ?' जैसे विकट प्रश्न का समाधान ललितप्रभसागर जी ने बड़े ही सहज एवं सरल शब्दों में करते हुए यह बताने का सफल प्रयास किया है कि धर्म जीवन का अभिन्न अंग है। पुस्तक अध्ययन कर कोई भी व्यक्ति सहज ही सन्मार्ग की ओर उन्मुख होकर अपने जीवन को सार्थक बना सकता है। वर्तमान में प्रस्तुत पुस्तक अत्यन्त उपयोगी है।
राघवेन्द्र पाण्डेय ( शोधछात्र)
भारतीय साहित्य के निर्माता स्वयम्भू; लेखक - डॉ० सदानन्द शाही; प्रकाशक- साहित्य अकादमी, रवीन्द्र भवन, ३५ फिरोजशाह मार्ग, नई दिल्ली- ११०००१; प्रथम संस्करण २००२; आकार- डिमाई; पृष्ठ- १०४; मूल्य- २५/- रुपया ।
" भारतीय साहित्य के निर्माता स्वयम्भू" के माध्यम से डॉ० सदानन्द शाही अपभ्रंश भाषा को गौरव प्रदान करने वाले अपभ्रंश के वाल्मीकि महाकवि स्वयम्भू पर उत्कृष्ट प्रकाश डाला है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने महाकवि स्वयम्भू की ऐतिहासिक विवेचना के साथ-साथ उनकी जीवनी, रचनाएँ, कथा स्रोत, काव्य सौन्दर्य आदि का प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत किया है। हिन्दी काव्यधारा में राहुल सांकृत्यायन महाकवि स्वयम्भू के बारे में लिखते हैं कि " वस्तुतः वह भारत के एक दर्जन अमर कवियों में से एक था। आश्चर्य और क्रोध दोनों होता है कि लोगों ने कैसे ऐसे महान् कवि को भुला देना चाहा । " वस्तुतः यह छोटी सी पुस्तक स्वयम्भू की रचनाओं पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालती है। मात्र १०४ पृष्ठ की पुस्तक में डॉ० शाही ने स्वयम्भू के बारे में इतना सुन्दर विवेचन किया है जो अन्यत्र दुर्लभ है। शोधार्थी के लिए भी यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी होगी । वस्तुतः यह पुस्तक " गागर में सागर " उक्ति को चरितार्थ करती है।
राघवेन्द्र पाण्डेय ( शोधछात्र)
गन्तव्य की ओर; प्रवचनकार - श्री पदममुनि 'अमन'; सम्पादक- कलाकुमार शर्मा, आकार - डिमाई; पृष्ठ २० + १७४; प्राप्ति स्थान- श्री जिगर एवं शैलेश शाह, ३०६ कैलाश विहार, सिविल लाइन्स, कानपुर, उत्तर प्रदेश; मूल्य- १०० /- रुपये ।
हमारे समाज में जब-जब भी धर्म की हानि हुई है तब-तब किसी न किसी महापुरुष धर्म की रक्षा के लिए जन्म लिया है। जिस काल एवं समाज में जो भी महापुरुष जन्म लेता है उस काल एवं समाज के व्यक्तियों के लिए वह 'सामान्य पुरुष' होता है जबकि वही 'सामान्य पुरुष' सा दीखने वाला व्यक्ति ही बाद के काल एवं समाज
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