Book Title: Sramana 2002 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 181
________________ १७६ : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर/२००२ सभी मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करना चाहता है। यह तभी सम्भव है जब वह कर्मपुद्गलों से पृथक् होकर वह अपनी स्वाभाविक पूर्णता को प्राप्त करके मुक्त हो जाता है। यही मोक्ष की अवस्था है। किसी सन्त के प्रवचनों की समीक्षा करना अपने आप में एक धृष्टता है, क्योंकि ऐसे सन्तों की समीक्षा उस परम्परा के ही सन्त कर सकते हैं, फिर भी दर्शनशास्त्र का विद्यार्थी होने के नाते किसी भी धर्माचार्य के सिद्धान्तों का खण्डन-मण्डन, तर्क-वितर्क, वाद-विवाद करना उसका विषय होता है। इसी अधिकार से मैंने श्री पदममुनि जी के उक्त ग्रन्थ की समीक्षा प्रस्तुत की है। वास्तव में यह ग्रन्थ मानव को उपभोक्तावादी प्रवृत्ति से रोकने एवं उसके आत्मविकास और आध्यात्मिकता का मार्ग प्रशस्त करने में उपयोगी है। निश्चय ही पदममनि जी का यह कार्य जैनशास्त्र के सरलीकरण में एक अभिनव एवं प्रसंशनीय प्रयास है। डॉ० धर्मेन्द्र कुमार सिंह गौतम (शोधछात्र) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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