Book Title: Sramana 2002 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 176
________________ साहित्य-सत्कार : १७१ शान्तसुधारसम्-भाग१, विवेचक- श्रीरत्नचन्द्रसूरीश्वर जी म० सा० डहेलावाला; भाषा- गुजराती; प्रकाशक- श्री पुरषादानीय पार्श्वनाथ जैन संघ, देवकीनन्दन, दर्पण सर्किल के पास, रूपक सोसायटी, अहमदाबाद; मूल्य ४०/- रुपये। प्रस्तुत पुस्तक उपाध्याय विनय विजय जी द्वारा रचित शान्तसुधारस नामक कृति पर आचार्य भगवन्त श्रीमद्रत्नचन्द्रसूरि द्वारा गुजराती भाषा में लिखे गये विवेचन का मुद्रित रूप है। अनित्यादि बारह भावनाएँ तथा मैत्रादि चार भावनाएँ मिलाकर कुल १६ भावनाओं में से पूर्वार्धस्वरूप आठ भावनाओं के तात्त्विक वर्णन को आधुनिक भाषा का रूप देकर स्थान-स्थान पर अनेक मुक्तक काव्य, पद, कविताएँ एवं दृष्टान्तों का इसमें भरपूर प्रयोग किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक भोग-उपभोग की दुनिया में डूबे लोगों को संसार की निःसारता का शान्त रस के माध्यम से ज्ञान कराने में सक्षम है। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक और मुद्रण सुस्पष्ट है। साध्वी भव्यानन्द पूछता नर पण्डिता, लेखक- डॉ० कविन शाह; भाषा- गुजराती; प्रकाशककुसुम के० शाह, ३/१, माणेक शा, अष्टमंगल अपार्टमेन्ट, बीली चार रस्ता, बीलीमोरा-३९६३२१; आकार- डिमाई; प्रथम संस्करण; मूल्य- १२५/- रुपया। प्रश्नोत्तर शैली जैन आगमों में भी पायी जाती है। विद्वान् श्रमणों ने भी समय-समय पर विभिन्न भाषाओं में प्रश्नोत्तर शैली के ग्रन्थों की रचनाएँ की हैं। ऐसी रचनाएँ विपुल परिमाण में उपलब्ध हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ विभिन्न विषयों से सम्बद्ध ग्यारह सौ प्रश्नों का जैनधर्म के दृष्टिकोण से दिये गये उत्तरों का संग्रह स्वरूप है। जनसामान्य को विभिन्न विषयों का एक ही ग्रन्थ से समुचित समाधान प्राप्त हो जाता है, इस दृष्टि से डॉ० कविन शाह द्वारा किया गया यह प्रयास प्रशंसनीय है। एक ही ग्रन्थ के सम्यक् स्वाध्याय से अनेक गहन विषयों का ज्ञान प्राप्त होने की सम्भावना से प्रस्तुत ग्रन्थ का पूछता नर पण्डिता नाम सार्थक है। साध्वी भव्यानन्द जिनतत्त्व, भाग १, लेखक- डॉ० रमणलाल ची० शाह; भाषा- गुजराती; प्रकाशक- श्री मुम्बई जैन युवक संघ, ३८५, सरदार वल्लभभाई पटेल रोड, मुम्बई ४००००४; आकार- डिमाई; प्रथम संस्करण; मूल्य २००/- रुपया। जैन-साहित्य के सुपरिचित लेखक डॉ० रमणलाल ची० शाह हैं। विवेच्य ग्रन्थ में तत्त्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा आचार मीमांसा से सम्बन्धित विभिन्न आलेखों का संग्रह प्रस्तुत किया गया है। जैनधर्म के गम्भीर दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हए अनेक मननीय विषयों जैसे सल्लेखना, धर्मध्यान आदि ४७ विषयों का इसमें विशद् रूप से विवेचन है। लेखक की भाषा अत्यन्त सरल एवं सुगम होने से जनसामान्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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