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साहित्य-सत्कार
निर्ग्रन्थ ऐतिहासिक लेखसमुच्चय (प्रथम एवं द्वितीय खण्ड), लेखक प्राध्यापक मधुसूदन ढांकी, श्रेष्ठी कस्तूरभाई लालभाई शोध लेख-समुच्चय श्रेणि ग्रन्थांक ४ और ५, प्रकाशक- श्रेष्ठी कस्तूरभाई लालभाई स्मारक निधि, अहमदाबाद; प्राप्तिस्थान- शारदा बहेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेण्टर 'दर्शन', राणकपुर सोसायटी के सामने, शाहीबाग, अहमदाबाद ३८०००४; पृष्ठ प्रथम भाग२४+३४०, द्वितीय भाग- २०+३०४+८७ प्लेट; आकार- रायल; मूल्य- प्रथम खण्ड ४००/- रुपये, द्वितीय खण्ड ५००/- रुपये।
प्रस्तुत ग्रन्थ 'निर्ग्रन्थ ऐतिहासिक लेख-समुच्चय' (प्रथम एवं द्वितीय खण्ड) जैन-परम्परा के साहित्य, इतिहास, स्थापत्यकला और पुरातत्त्व के शीर्षस्थ विद्वान् प्राध्यापक मधुसूदन ढांकी के गुजराती-भाषा में पूर्व प्रकाशित शोध आलेखों का संकलन है। प्रथम खण्ड में कुल ३४ आलेख हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं--- १- साहित्यअने पुरातत्त्वना परिप्रेक्ष्य में गुजरात मां निर्ग्रन्थ-दर्शन; २- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्यमा 'नमस्कारमंगल'; ३- भद्राचार्य अने दत्तिलाचार्य; ४- 'स्वभाव सत्ता' विषयक त्रण जूना जैन-ग्रन्थ अन्तर्गत मणतां उद्धरणोविशे; ५- स्वामी समन्तभद्रनो समय; ६- वादी-कवि बप्पभट्टिसूरि; ७- पादलिप्तसूरिविरचित 'निर्वाणकलिका'नो समय अने आनुषंगिक समस्याओ; ८- कहावलिकर्ता भद्रेश्वरसूरिना समय विशे; ९- 'गौतमस्वामीस्तव'ना कर्ता वज्रस्वामी विशे; १०- नैमिस्तुतिकार विजयसिंहसूरि विशे; ११- सोलंकीयुगीन इतिहासना केटलांक उपेक्षित पात्रो; १२- 'मीनलदेवीनुं असली अभिधान, १३. श्रीपाल-परिवारनो कुलधर्म; १४- कवि रामचन्द्र अने कवि सागरचन्द्र; १५अममस्वामिचरितनो रचनाकाल; १६- 'कर्पूरप्रकर'नो रचनाकाल; १७- 'स्याद्वादमंजरी' कर्तृ मल्लिषेणसूरिना गुरु उदयप्रभसूरि कोण?; १८- जीर्णदुर्ग-जूनागढ़ विशे; १९व्यंतर वालीनाह विशे; २०- तीर्थंकरोनी निर्वाणभूमिओ संबद्ध स्तोत्रो; २१आर्यनंदिलकृत 'वैरोट्यादेवी स्तव' तथा 'उपसर्गहरस्तोत्र'नो रचनाकाल; २२संगमसूरिकृत संस्कृत-भाषाबद्ध 'चैत्यपरिपाटीस्तव'; २३- कुमुदचन्द्राचार्यप्रणीत 'चिकुरद्वात्रिंशिका'; २४- सागरचन्द्रकृत क्रियागर्भित 'चतुर्विंशतिजिनस्तव'; २५जैत्रसूरिशिष्यकृत 'वीतरागस्तुति'; २६- ज्ञानचन्द्रकृत संस्कृत-भाषा-निबद्ध 'श्रीरैवतगिरितीर्थस्तोत्र'; २७- जयतिलकसूरि विरचित 'श्रीगिरनार चैत्य प्रवाडि'; २४अज्ञातकर्तृक 'श्रीगिरनार चेत्त परिवाडि'; २९- कर्णसिंहकृत गिरनारस्थ खरतरवसही-गीत'; ३०- धर्मघोषसूरिगच्छीय (राजगच्छीय) अमरप्रभसूरिकृत ‘शत्रुजय चैत्यपरिपाटीस्तोत्र';
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