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११८ : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर २००२ दिया जाता था। धीरे-धीरे जैनों ने इन विचारों को बदलना प्रारम्भ किया तथा कई जैन केन्द्रों की स्थापना की गयी, जहाँ इन अलभ्य, हस्तलिखित ग्रन्थों के प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ किया गया। आज सम्पूर्ण भारत में अनेकों जैन प्रकाशन संस्थान स्थापित हैं जो जैन ग्रन्थों के सम्पादन एवं प्रकाशन में पूर्णरूप से संलग्न हैं।६
राजस्थान में महावीर कल्याणक केन्द्र की ओर से एक शोध संस्थान का संचालन लगभग ४५ वर्षों से हो रहा है। प्रारम्भ में इसका नाम आमेर शास्त्र भण्डार था तत्पश्चात् अनुसन्धान विभाग, साहित्य शोध विभाग नाम पड़ा। वर्तमान में इसका नाम जैन विद्या शोध संस्थान है। यह जयपुर में स्थापित है। इनके अतिरिक्त जयपुर में महावीर ग्रन्थ अकादमी, जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान, प्राकृत-भारती अकादमी, अपभ्रंश-साहित्य अकादमी आदि प्रमुख अकादमिक संस्थान हैं। इनके अतिरिक्त राजस्थान में जैन विश्व भारती (लाडनूं), आगम-अहिंसा, समता एवं प्राकृत संस्थान (उदयपुर), प्राकृत अध्ययन प्रसार संस्थान (उदयपुर), जैन विद्या संस्थान (श्री महावीर जी) आदि प्रमुख शैक्षणिक शोध संस्थान हैं।
उपरोक्त संस्थाओं के अतिरिक्त श्री देवकुमार जैन शोध संस्थान (आरा), पार्श्वनाथ विद्यापीठ (वाराणसी), वीर सेवा मन्दिर (नई दिल्ली), प्राकृत ज्ञान भारती (बैंगलोर), जैन-साहित्य शोध संस्थान (आगरा), दिगम्बर जैन शोध संस्थान (उ०प्र०), गणेशवर्णी शोध संस्थान (वाराणसी), प्राकृत जैन शास्त्र एवं अहिंसा शोध संस्थान (बिहार), लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर (अहमदाबाद), भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय संस्कृति संस्थान (दिल्ली), कुन्दकुन्द भारती (नयी दिल्ली), श्रीमती रमा जैन शोध संस्थान (कर्नाटक), सेठ बख्तावर रिसर्च इन्स्टीट्यूट (मद्रास), आचार्य विद्यासागर शोध संस्थान (मध्य प्रदेश), अनेकान्त (कुम्भोज), मुनि विद्यानन्द शोध संस्थान (उ०प्र०), रत्नत्रय शिक्षा एवं शोध संस्थान (दिल्ली), स्यादवाद शोध संस्थान (मध्य प्रदेश), कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ (म०प्र०), भगवान महावीर रिसर्च सेण्टर (महाराष्ट्र), रिसर्च फाउण्डेशन फॉर जैनोलॉजी (मद्रास), प्राकृत एवं जैन विद्या विकास फण्ड (अहमदाबाद), दिगम्बर जैन शोध प्रतिष्ठान (मध्य प्रदेश), आदि प्रमुख जैन शोध संस्थाएँ सम्पूर्ण भारतवर्ष में फैली हुई हैं जिनके माध्यम से जैन विद्या के विभिन्न पक्षों पर उच्चस्तरीय शोधकार्य किया जा रहा है।
शोध एवं प्रकाशन संस्थान के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत में कई पुस्तकालयों का भी जैन संस्थाओं द्वारा निर्माण किया गया जिनके माध्यम से प्रकाशित जैन पुस्तकें आम जनता तक पहुँचायी जा सकें। अपने धर्म के विस्तार का जो उत्साह जैन-समुदाय में देखने को मिलता है वह अन्यत्र दिखाई नहीं देता। अपने साहित्य के प्रचार-प्रसार हेतु ये तीव्र गति से प्रयासरत हैं।
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