________________
सामाजिक-राजनैतिक समस्याओं का
समाधान : अनेकान्त
डॉ० हेमलता बोलिया
आज का सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य किसी से अछूता नहीं है। वर्तमान में समाज और राजनीति की जो स्थिति है उससे वातावरण न तो स्वस्थ ही कहा जा सकता और न शान्त। समाज की लघुतम इकाई परिवार है, परिवारों के समूह को मोहल्ला, एक समान धर्म-आचार और विश्वासों तथा कर्म वाले परिवारों का समूह जाति या समुदाय कहलाता है। यही समुदाय परस्पर आवागमन, सांस्कृतिक पर्यों के आयोजन, आर्थिक विनियोजन के माध्यम से समाज का स्वरूप ग्रहण करता है। वह परस्पर सामञ्जस्य और शान्तिमय जीवन के लिए कुछ नियम या आचार संहिता बनाता है, इस के माध्यम से वह अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करता है।
__परिवार या परिवारों के वातावरण का सामूहिक रूप ही सामाजिक वातावरण है; किन्तु विडम्बना यह है कि आज प्रत्येक परिवार में भौतिक सुख-समृद्धि के होते हुए भी तनाव का दृश्य दिखायी देता है। व्यक्ति जो कुछ सोचता या चाहता है वैसा लाभ या अपेक्षा की पूर्ति परिवार के अन्य सदस्यों से न होने के कारण उसकी सोच की प्रक्रिया तेज होकर नसों में खिंचाव पैदा कर देती है, जिससे उसके सोचने-समझने की शक्ति अवरुद्ध हो जाती है, परिणामस्वरूप परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति उसके मन में क्रोध उत्पन्न होता है। यही क्रोध जब झुंझलाहट में बदलता है तो परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति विश्वास में कमी और टकराहट उत्पन्न करता है। यथा- सासबहू के प्रति और बहू सास के प्रति सशंक हो उठती है। शंका की स्थिति उन्हें कुछ छिपाने को बाध्य करती है, एक दूसरे के बढ़ते आरोप-प्रत्यारोप परिवार में विघटन-अलगाव पैदा करते हैं। फलत: दोनों ही पक्ष अपने आपको असहाय अनुभव करते हैं। उस असहायता की अनुभूति में उन्हें अर्थ मात्र- अर्थ अपना अवलम्बन प्रतीत होता है। सास चाहती है, अर्थ पर उसका आधिपत्य रहे, उसकी योजनानुसार कार्य हो, बहू भी यही अपने पक्ष में चाहती है। यही द्वन्द्व अलगाव और रिश्तों की टूटन को जन्म देता है। फलस्वरूप एकल परिवार अधिकाधिक अर्थार्जन को अपना लक्ष्य *. संस्कृत-विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org