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१०० : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर २००२
पुव्वं बुद्धीए पासित्ता, ततो वक्कमुदाहरे।
अचक्खुओ व्व नेतारं, बुद्धिं अन्नेसए गिरा।। २५ अर्थात् पहले बुद्धि से परख कर फिर बोलना चाहिए। अन्धा व्यक्ति जिस प्रकार पथ-प्रदर्शन की अपेक्षा रखता है, उसी प्रकार वाणी बुद्धि की अपेक्षा रखती है। शिक्षा के साधक तत्त्व
नीचे दी हुई पन्द्रह प्रकार की प्रवृत्तियों का सेवन करने वाला व्यक्ति शिक्षा के योग्य कहा गया है
१. जो नम्र होता है, २. जो चपल नहीं होता, ३. जो मायावी नहीं होता, ४. जो कुतुहल नहीं करता, ५. जो किसी पर आक्षेप नहीं करता, ६. जो क्रोध को टिकाकर नहीं रखता, ७. जो मैत्री करने वाले के साथ मैत्री का व्यवहार करता है, ८. जो मन का मद नहीं करता, ९. स्खलना होने पर किसी का तिरस्कार नहीं करता, १०. मित्रों पर क्रोध नहीं करता, ११. अप्रियता रखने वाले मित्र की भी एकान्त में प्रशंसा करता है, १२. कलह और हाथापाई का वर्जन करता है, १३. कुलीन होता है, १४. लज्जावान होता है, १५. प्रतिसंलीन- इन्द्रिय और मन का संगोपन करने । वाला होता है।२६ शिक्षा के बाधक तत्त्व उत्तराध्ययनसूत्र में शिक्षा के बाधक तत्त्वों का भी वर्णन है
अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भई।
थंमा कोहा पमाएणं रोगेणाऽऽलस्सएण य।।२७ इसी प्रकार निम्न प्रकार की प्रवृत्तियों वाला अविनीत-शिक्षा के अयोग्य कहलाता है। वह निर्वाण-मानसिक शान्ति को प्राप्त नहीं होता
१. जो बार-बार क्रोध करता है, २. जो क्रोध को टिका कर रखता है, ३. जो मैत्री करने वाले के साथ भी अमैत्रीपूर्ण व्यवहार करता है, ४. जो ज्ञान का मद करता है, ५. किसी की स्खलना होने पर उसका तिरस्कार करता है, ६. मित्रों पर कुपित होता है, ७. प्रियता रखने वाले मित्र की भी एकान्त में बुराई करता है, ८. असम्बद्धभाषी है, ९. द्रोही है, १०. अभिमानी है, ११. लुब्ध है, १२. जितेन्द्रिय नहीं है, १३. संविभाग नहीं करता है, १४. विश्वसनीय अथवा प्रीतिकर नहीं है।२८ स्वाध्याय का महत्त्व
जैन साधना में स्वाध्याय को बहुत महत्त्व दिया गया है। स्वाध्याय शिक्षा का
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