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श्रमण / जुलाई-दिसम्बर २००२
अम्ब- ये नरकीय जीवों को खींच कर उनके स्थान से गिराता है।
अम्बरीष- ये नारक को गड़ासों से काट-काट कर भाड़ में पकाने योग्य टुकड़े-टुकड़े करते हैं।
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श्याम- ये नारकों को हाथ के प्रहार तथा कोड़ों की सहायता से मारते-पीटते हैं।
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शबल- ये नारक के शरीर को चीड़-फाड़ कर अंग-प्रत्यंग निकाल देते हैं। ये नारकीय जीवों को भाले बर्छे आदि से छेदकर ऊपर
रुद्र- उपरुद्र
लटकाते हैं।
ये नरकपाल नारकों को कड़ाही आदि में पकाते हैं। महाकाल— ये नारकीय जीवों के टुकड़े-टुकड़े करके खाते हैं।
असिपत्र- ये नरकपाल सेमल वृक्ष का रूप धारण कर अपने नीचे छाया निर्मित कर नीचे आने वाले नारकों को तलवार की धार के समान तीक्ष्ण पत्ते गिरा कर उन्हें कष्ट प्रदान करते हैं।
काल
धनुष- ये तीक्ष्ण नुकीले बाणों से नारकीय जीवों के अंगों का छेदन - भेदन कर देते हैं।
कुम्भ- ये आग की तपती कुम्भ में व्यक्तियों को पकाते हैं।
बालुका- ये बालु का आकार बना लेते हैं तथा उष्ण बालू में गर्म भाड़ के चने के समान नारकीय प्राणियों को भूनते हैं।
वैतरणी - ये रक्त आदि वीभत्स वस्तुओं से भरी जल नदी का रूप धारण कर प्यास से पीड़ित नारकों को पीड़ा पहुँचाते हैं।
खरस्वरये काले वज्रमय कण्टकाकीर्ण सेमल वृक्ष पर नारकों को बार-बार चढ़ाते उतारते हैं।
महाघोष - ये भय से भागते हुए नारकीय जीवों को बाड़ों में घेर कर उन्हें नानाप्रकार की यातनाएँ देते हैं और तीसरी पृथ्वी तक जा कर नारकों को भयंकर पीड़ा पहुँचाते हैं। "
नरकपाल लोगों को दण्ड प्रदान करने के लिए विभिन्न शस्त्र का प्रयोग करते हैं जो इस प्रकार हैं- मुद्गर, मुसुंदि, करवत, शक्ति, हल, गदा, मूसल, चक्र, कुन्त (भाला), तोमर (बाण का एक प्रकार), शूल, लकुट (लाठी), भिण्डिमाल (पाल), सद्धल (एक विशेष प्रकार का भाला), पट्टिस, द्रुघण (वृक्ष को गिराने वाला
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