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खरतरगच्छ-रुद्रपल्लीयशाखा का इतिहास : ८३ बारे में जानकारी के अभाव में कुछ भी कह पाना कठिन है।
वि.सं. १५६९ के लेख१८ में उल्लिखित चारित्रराज एवं देवरत्नसूरि के गुरु आनन्दसुन्दर तथा शीलवतीकथा (रचनाकाल वि.सं. १५६२/ई.सन् १५०६) के रचनाकार आज्ञासुन्दरसूरि के गुरु आनन्दसुन्दर भी यदि एक ही व्यक्ति हों तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। इस प्रकार देवभद्रसूरि, श्रीचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि द्वितीय', मुनिसुन्दरसूरि, संघतिलकसूरि, अभयदेवसूरि ‘द्वितीय' आदि का दोनों प्रकार के साक्ष्यों में उल्लेख मिल जाता है। जहां साहित्यिक साक्ष्य इनके पूर्वापर सम्बन्धों के बारे में मौन हैं वहीं अभिलेखीय साक्ष्यों से वे निश्चित हो चुके हैं। इस प्रकार साहित्यिक साक्ष्यों द्वारा निर्मित पूर्वप्रदर्शित तालिका को अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा जो नूतन स्वरूप प्राप्त होता है वह निम्नानुसार है- द्रष्टव्य तालिका क्रमांक-२
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