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९२ : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर २००२ एक बड़े वर्ग पर खरतरगच्छ की इस शाखा के मुनिजनों का लगभग ३०० वर्षों तक प्रभाव रहा है। श्री अगरचन्द नाहटा२५ ने वि.स. की १७वीं शती तक इस गच्छ का अस्तित्व बतलाया है। उसके बाद इस गच्छ से सम्बद्ध कोई सूचना प्राप्त नहीं होती, अत: यह माना जा सकता है कि रुद्रपल्लीय शाखा का १७वीं शताब्दी के बाद स्वतन्त्र अस्तित्व समाप्त हो गया होगा और इस गच्छ के अनुयायी साधु और श्रावक किन्हीं अन्य गच्छों विशेषकर खरतरगच्छ या उसकी किन्हीं शाखाओं में सम्मिलित हो गये होंगे। सन्दर्भ 3. P. Peterson; A Fourth Report of Operation in Search of Sanskrit
Mss in the Bombay Circle 1886-1892 A.D., Bombay 1896 A.D. No. 1248, pp. 87-89. A.P. Shah; Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss Muniraja Shree Punya Vijayalis Collection, Vol. I,L.D.Series No. 2, Ahmedabad,
1963 A.D., No. 3419, pp. 197-198. ३. Muni Punya Vijaya - Ed. New Catalogue of Sanskrit and Prakrit
Mss. : Jesalmer Collection, L.D. Series No. 36, Ahmedabad 1972
A.D.No. 1798, p. 325. 8. P. Peterson; A First Report of Operation in Search of Sanskrit Mss
in the Bombay Circle,. Bombay 1884 A.D., No. 351, pp. 92-94. हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, भक्तामरकल्याणमन्दिरनमिऊणस्तोत्रत्रयम्, मुम्बई १९३२ ईस्वी, पृष्ठ १२२. P. Peterson; A Fifth Report of Operation in Search of Sanskrit Mss. in the Bombay Circle, Bombay 1896 A.D., No. 779, p. 207-208. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूजरकविओ, भाग-१, नवीन संस्करण,
सम्पा० - डॉ० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८६ ईस्वी, पृष्ठ ३७. 6. P. Peterson; A Sixth Report of the Operation in Search of Sanskrit ___Mss. in the Bombay Circle, Bombay 1894 A.D., No. 1299,
pp. 108-109. यह ग्रन्थ खरतरगच्छ ग्रन्थमाला, लालबाग, मुम्बई से १९२२ ईस्वी में दो भागों में प्रकाशित हुआ है। ग्रन्थ के अन्त में ३२ श्लोकों की लम्बी प्रशस्ति है जिसमें ग्रन्थकार के गुरु-परम्परा तथा रचनाकाल आदि का निर्देश है।
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