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खरतरगच्छ-रुद्रपल्लीयशाखा का इतिहास : ९३ ९. जौहरीमल पारेख, सम्पा० - जिनभद्रसूरिज्ञानभण्डार जैसलमेर के हस्त
लिखित ग्रन्थों का सूचीपत्र, द्वितीय खण्ड, जिनदर्शन प्रतिष्ठान-ग्रन्थ क्रमांक
१, जोधपुर १९८८ ई०, विभाग ४-अ, क्रमांक ४१६, पृष्ठ २४०-२४१. १०. सं० १३११ फाल्गुन सुदि १२ शुक्रे श्री नमिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं
रुद्रपल्लीयप्रभानन्दसूरिभिः।। B. Bhattacharya, "The bhale Symbol of the Jains", Barliner
Indologische Studien, Band 8, 1995, Plate XXII. ११. ओ० संवत् १२९६ वर्षे फागुण वदि ५ रवौ कीरग्रामे ब्रह्मक्षत्रगोत्रोत्पन्नव्यव.
मानूपुत्राभ्यां व्य. दोल्हणआल्हणाभ्यां स्वकारितश्रीमन्महावीरदेवचैत्ये।। श्रीमहावीरजिनमूलबिंबं आत्मश्रेयो (थ) कारितं। प्रतिष्ठितं च श्रीजिनवल्लभसूरिसंतानीयरुद्रपल्लीयश्रीमदभयदेवसूरिशिष्यैः श्रीदेवभद्रसूरिभिः।। G. Buhler, "The Jaina Inscription in the temple of Baijnatha at Kiragrame", Epigraphia Indica, Vol. I, Calcutta 1892 A.D., pp.
118-119. १२. द्रष्टव्य, लेख क्रमांक २. १३. लेख क्रमांक ४. १४. लेख क्रमांक ७.
१५. लेख क्रमांक ८. १६. मुनि कल्याणविजय, प्रबन्धपारिजात, जालोर १९६६ ई०, लेखांक १४,
पृष्ठ ३८१. १७. शिवप्रसाद, “धर्मघोषगच्छ का संक्षिप्त इतिहास', श्रमण, वर्ष ४१, अंक
१-३, पृष्ठ ५१. १८. द्रष्टव्य- लेख क्रमांक ४९. १९. लेख क्रमांक २३,२४,२५ २०. लेख क्रमांक ३४,४४ २१. लेख क्रमांक ४६. २२. लेख क्रमांक ४८. २३. श्रीरुद्रपल्लीयवरेण्यगच्छे, देवप्रभाचार्यपदाब्जहंसः।
वादीन्द्रचूड़ामणिदेव जैनो, जीयाद्गुरुः श्रीकमलप्रभाख्यः।।२५।। नमस्कारस्वाध्याय, सम्पा० मुनिश्री धुरन्धरविजयजी एवं जम्बूविजयजी, जैन
साहित्य विकास मण्डल, मुम्बई १९६२ ई०स०, पृष्ठ १८४-१८८. २४. अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ५, वाराणसी
१९६९ ई०, पृ० १८९. २५. अगरचन्द नाहटा, “जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश", यतीन्द्रसूरि
अभिनन्दन ग्रन्थ, आहोर १९५८ ई०, पृष्ठ १४५.
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