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६४ : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर २००२
प्रस्तुत आलेख का उद्देश्यमात्र यही स्पष्ट करना है कि तथाकथित जन्मभूमि स्थल से प्राप्त शिलालेख में उल्लिखित नयचन्द्र और रम्भामञ्जरी नाटिका के रचनाकार नयचन्द्रसूरि दोनों अलग-अलग व्यक्ति हैं।
रम्भामञ्जरी के कर्ता के सम्बन्ध में निम्न बातें उल्लेखनीय हैं
नयचन्द्रसूरि एक जैन आचार्य थे और ये निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय के कृष्णर्षिगच्छ से सम्बद्ध रहे। इनके गुरु का नाम प्रसन्नचन्द्रसूरि और प्रगुरु का नाम जयसिंहसूरि था जिन्होंने वि०सं० १४२२/ई० स० १३६६ में कुमारपालचरित की रचना की थी। इस ग्रन्थ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि नयचन्द्रसूरि ने इसकी प्रथमादर्शप्रति तैयार की थी। नयचन्द्रसूरि द्वारा रचित हम्मीरमहाकाव्य नामक एक कृति भी प्राप्त होती है। रम्भामञ्जरी का रचनाकाल वि०सं० १४४४/ई० सन् १३८७ के
आस-पास माना जाता है। इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि अयोध्या (तथाकथित जन्मभूमि) से प्राप्त अभिलेख में उल्लिखित नयचन्द्र और रम्भामञ्जरी के रचनाकार नयचन्द्रसूरि दोनों भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं। दोनों के मध्य लगभग २५० वर्षों का दीर्घ अन्तराल है। एक सर्वसुविधा सम्पन्न सामन्त है तो दूसरा पूर्ण अपरिग्रही एक जैन आचार्य। सन्दर्भ १. T.P. Verma, "Studies in Epigraphy", SamskritiSandhan, Vol. VIII
1995, p. 114 २-४. Ibid, pp. 114-115. ५. शिवप्रसाद, 'कृष्णर्षिगच्छ का इतिहास', निम्रन्थ, जिल्द १, अहमदाबाद
१९९६ ईस्वी, हिन्दी खण्ड, पृ० २४-३५. ६-७. H.R. Kapadia, Descriptive Catalogue of Govt. Collection of Mss.
deposited at the Bhandarkar Oriental Research Institute, Vol. XIX,
Section II, Part I, B.O.R.I., Pune 1967, pp. 176-178. ८. हम्मीरमहाकाव्य, सम्पा० मुनि जिनविजय, राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला,
ग्रन्थांक ६५, जोधपुर १९६८ ई०. H.D. Velankar, Jinaratnakosha, B.O.R.I., Government Oriental Series, Class,C.No. 4, Poona 1944 A.D., p. 329.
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