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अयोध्या से प्राप्त अभिलेख में उल्लिखित नयचन्द्र
रम्भामञ्जरी के कर्ता नहीं
शिवप्रसाद
तथाकथित रामजन्मभूमि/बाबरीमस्जिद के ध्वंसावशेषों में ऐतिहासिक महत्त्व की अनेक सामग्रियां प्राप्त हुई हैं। इनमें ५ फुट लम्बा और २.२५ फुट चौड़ा एक पाषाण फलक भी है जिस पर संस्कृत-भाषा और १२वीं शती की नागरी लिपि में एक लेख उत्कीर्ण है। वर्तमान में यह अभिलेख अयोध्या संग्रहालय में कड़ी सुरक्षा के बीच सीलबन्द अवस्था में रखा गया है। सन् १९९६ ई० में माननीय उच्चन्यायालय की विशेष अनुमति पर तीन सदस्यीय इतिहासकारों के एक दल को इस अभिलेख को देखने का अवसर प्राप्त हुआ और उन्होंने अपने-अपने ढंग से इसकी वाचना की।
इतिहासकार और पुरालिपिज्ञाता डॉ० ठाकुरप्रसाद वर्मा ने इस अभिलेख का विशद् अध्ययन किया है। उनके अनुसार उक्त अभिलेख से अनेक रोचक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। अभिलेख के अनुसार यह गहड़वालों के सामन्त नयचन्द्र, जो आल्हण का पुत्र था, से सम्बन्धित है। नयचन्द्र का अनुज आयुष्चन्द्र इस लेख का रचनाकार कहा गया है। डॉ० वर्मा ने इस नयचन्द्र को रम्भामञ्जरी के कर्ता नयचन्द्रसरि से अभिन्न होने की सम्भावना व्यक्त की है। उन्होंने गोविन्दचन्द्र के वि०सं० ११८२/ई०स० ११२५ के कमौली ताम्रपत्र का भी इस सम्बन्ध में उल्लेख किया है। इस ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण लेख के १५वें पंक्ति में आल्हण के पुत्र कीठण को लेख का रचयिता कहा गया है। चूंकि अयोध्या (जन्मभूमि) से प्राप्त अभिलेख में उल्लिखित नयचन्द्र और आयुष्चन्द्र के पिता का भी नाम आल्हण था और कमौली दानपत्र के रचयिता का भी यही नाम ऊपर हम देख चुके हैं, इस आधार पर उन्होंने यह अनुमान व्यक्त किया है कि केल्हण के तीन पुत्र थे और सभी साहित्यिक रुचि रखने वाले थे। चूंकि कमौली ताम्रपत्र की १३वीं पंक्ति में गोविन्दचन्द्र का नाम बिना किसी राजकीय उपाधि के मिलता है इससे उन्होंने यह विचार व्यक्त किया है कि अयोध्या अभिलेख गोविन्दचन्द्र की कुमारावस्था का है और इसे वि०सं० ११८२ के पूर्व का मानने में कोई आपत्ति नहीं है।
*. प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी.
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