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आचार्य हरिभद्रसूरि प्रणीत उपदेशपद : एक अध्ययन : ३१
क्या है ? क्या है ?
उत्तर- सद्भाव। पाण्डित्य क्या है ? उत्तर- हिताहित का विवेक । विषम उत्तर - कार्य की गति । प्राप्त करने योग्य क्या है ? उत्तर- मनुष्य द्वारा गुण ग्रहण सुख से प्राप्त करने योग्य क्या है ? उत्तर - सज्जन पुरुष । तथा कठिनता से प्राप्त करने योग्य क्या है ? उत्तर- दुर्जन पुरुष ४४
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आगे अनेक विषयों को सोदाहरण प्रस्तुत करते हुए धर्मरत्न प्राप्ति की योग्यता को समझाया है । ४५ विषयाभ्यास में शुक और भावाभ्यास में नरसुन्दर, ४६ की तथा शुद्धयोग में दुर्गत नारी और शुद्धानुष्ठान में रत्नशिख की कथा दी है। ४७ ग्रन्थ का उपसंहार करते हुए आचार्य हरिभद्र ने कहा है कि शाश्वत सुख चाहने पुरुष को कल्याणमित्र-योगादि रूप विशुद्ध योगों में धर्म सिद्ध करने का सम्यक् प्रयास करना चाहिए। ४८
वाले
धर्मकथाप्रधान इस उपदेशपद की लघुकथाओं का विभाजन निम्नलिखित वर्गों में किया जा सकता है"
१. कार्य एवं घटना प्रधान कथाएं
१. इन्द्रदत्त (गाथा १२ ), २. धूर्तराज ( गाथा ८६), ३. शत्रुता ( गाथा ११७)। २. चरित्र प्रधान कथाएं
१. मूलदेव ( गाथा ११ ), २. विनय ( गाथा २०), ३. शीलवती (गाथा ३०-३४), ४. रामकथा ( गाथा ११४), ५. वज्रस्वामी ( गाथा १४६ ), ६. गौतम स्वामी (गाथा १४२), ७. आर्य महागिरि (गाथा २०३-२११), ८. आर्य सुहस्ति (गाथा २०३-२११), ९. विचित्र कर्मोदय ( गाथा २०३ - २११), १०. भीमकुमार ( गाथा २४५ - २५० ), ११. रुद्र ( गाथा ३९५-४०२), १२. श्रावकपुत्र (गाथा ५०६-५१७), १३. पाखण्डी (गाथा २५८), १४. कुरुचन्द्र ( गाथा ९५२-९६९), १५. शंख नृपति ( गाथा ७३६ - ७६२), १६. ऋद्धिसुन्दरी (गाथा ७०८), १७. रति - सुन्दरी (गाथा ७०३), १८. गुणसुन्दरी (७१३), १९. नृप पत्नी (गाथा ८६१-८६८) ।
३. भावना और वृत्तिप्रधान कथाएं
१. गालव (गाथा ३७८-३८२), २. मेघकुमार (गाथा २६४-३७२), ३. तोते की पूजा (गाथा ९७५-९६९), ४. वृद्धा नारी (गाथा १०२० -१०३०)।
४. व्यंग्य प्रधान कथाएं
१. कच्छप का लक्ष्य (गाथा १३), २. युवकों से प्रेम (गाथा ११३)।
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