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५८ : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर २००२
भगवान् महावीर के जीवनकाल में स्थापित जीवंत स्वामी मन्दिरों के विषय में संवत् १४९७ (ई०स० १४४०) में जिनहर्षसूरि ने वस्तुपालचरित्र में लिखा है कि जीवित स्वामी की मूर्तियाँ भगवान् के जीवनकाल में निर्मित मानना चाहिए।
। भगवान् महावीर के राजस्थान प्रदेश में विचरण के विषय में दिगम्बरों एवं श्वेताम्बरों में अलग-अलग मान्यताएँ हैं, परन्तु १३वीं एवं १४वीं शताब्दी के शिलालेखों, पट्टावलियों, तीर्थमालाओं एवं वाचिक-परम्परा के सन्दर्भो के प्रकाश में विद्वानों को इस विषय में खोज करनी चाहिए।
_प्रसिद्ध जैन आचार्य यशोभद्रसूरि (८वीं शताब्दी) का जन्म बामणवाडजी के पास वर्तमान पलाई गांव में हआ था। प्रसिद्ध आचार्य लक्ष्मीसागरसूरि का जन्म वर्तमान रेवदर तहसील के धवली गांव में हुआ था। अंचलगच्छ के संस्थापक आरक्षितसूरि का जन्म वर्तमान रेवदर तहसील के दंताणी गांव में हुआ था। जैनों के कई गच्छों का नामकरण सिरोही जिले के गांवों से माना जाता है। मण्डार से मडाहडगच्छ, जीरावला से जीरापल्लीगच्छ, काछोली से कच्छोलीवालगच्छ, पास के नाणा गांव से नाणकीयगच्छ एवं ब्राह्मणवाड से ब्रह्माणगच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है। इस गच्छों में जीरावलागच्छ का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। विश्व के किसी भी स्थान पर जब किसी जैन मन्दिर की प्रतिष्ठा होती है तो “ॐ ह्रीं श्री जीरावला पार्श्वनाथाय नमः" के मन्त्रोच्चार के साथ प्रतिमा की स्थापना होती है।
चन्द्रावती, आबू, काछोली, कासिन्द्रा, सिरोही एवं सानवाड़ा में कई ग्रन्थों की रचना हुई एवं नकलें तैयार हुईं। सिरोही में चित्रित स्वर्णाक्षरी कल्पसूत्र प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध जैनाचार्य हेमचन्द्र ने शब्दानुशासन की रचना अजारी स्थित भगवती सरस्वती की आराधना के बाद की थी। अकबर प्रतिबोधक हीरविजयसूरि को आचार्य पदवी सिरोही नगर में दी गयी थी और श्रावकों में स्वर्ण मुहरों की प्रभावना की गयी थी।
संवत् १५१७ के आस-पास रचित उपदेशतरंगिणी में रत्नमन्दिरगणि ने आबू परिक्रमा के गांवों के विषय में एक महत्त्वपूर्ण सूचना दी है। गुजरात के एक राज्याधिकारी
और चन्द्रावती के शासक विमलशाह ने आबू के आदीश्वर भगवान् की नित्य स्नात्र पूजा और विधि-विधान के लिए आबू परिक्रमा के ३६० गांवों में जैनों को बसाया था और उन्हें सब प्रकार के करों से माफी देकर धनवान बना दिया था। यही जैन लोग क्रम से आबू के मन्दिरों की व्यवस्था करते थे।
स्थानकवासी-परम्परा
स्थानकवासी-परम्परा का प्रारम्भ सिरोही जिले के अरठवाडा गांव में जन्मे लोकाशाह ने किया। उन्होंने अहमदाबाद में १४५१ ई० में लोंकागच्छ की स्थापना
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