Book Title: Sramana 2002 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 49
________________ ४४ : श्रमण / जुलाई - दिसम्बर २००२ इसकी रचना भानुविजय के अध्ययनार्थ की थी। छन्दोद्वात्रिंशिका (शीलशेखरगणि) १२ संस्कृत श्लोकों में विरचित ३२ पद्यों में इस अतिलघु रचना में महत्त्वपूर्ण छन्दों के लक्षण प्रतिपादित हैं। छन्दशास्त्रकार का समय अज्ञात है। इनके विषय में अन्य कोई सूचना भी नहीं है । छन्दोद्वात्रिंशिका की हस्तलिखित प्रति (लगभग १७वीं शताब्दी की) लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर में प्राप्त होती है। छन्दोवतंस' (सन् १७१४ ई०) ३ यह वाचक शान्तिहर्ष के शिष्य उपाध्याय लालचन्द्रगणि द्वारा संस्कृत में विरचित छन्द ग्रन्थ है। इसमें केदारभट्टकृत वृत्तरत्नाकर का अनुसरण किया गया है और उसमें से कुछ चुने हुए अति उपयोगी छन्दों का विस्तार से विवेचन है । यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। आर्या- संख्या- उद्दिष्ट - नष्टवर्त्तनविधि १४ उपाध्याय समयसुन्दर ( १७वीं शताब्दी) द्वारा विरचित इस छन्द ग्रन्थ में आर्या छन्द की संख्या और उद्दिष्ट नष्ट विषयों की चर्चा है। इन्होंने संस्कृत और प्राचीन गुजराती में अनेक कृतियों की रचना की है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है। प्रस्तार विमलेन्दु १५ मुनि बिहारी (१८ वीं शताब्दी) ने इस छन्द - विषयक ग्रन्थ की रचना की है। ये अनेक ग्रन्थों के प्रतिलिपिकार थे। इनके विषय में अन्य कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। (ब) प्राकृत भाषा में रचित कृतियाँ छन्दोविद्या" यह कृति अध्यात्म, काव्य और न्यायशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित कवि राजमल्ल द्वारा विरचित है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और हिन्दी में निबद्ध इस ग्रन्थ की श्लोक संख्या ५५० है। इनमें प्राकृत और अपभ्रंश छन्द मुख्य हैं। इस ग्रन्थ के ८ से ६४ पद्यों में छन्दशास्त्र के नियम-उपनियम बताये गये हैं, जिसमें अनेक प्रकार के छन्द-भेद, उनका स्वरूप, फल और प्रस्तारों का वर्णन है । छन्दोविद्या में बादशाह अकबर के समय की अनेक घटनाओं का भी उल्लेख है। छन्दोविद्या की रचना राजा भारमल्ल के लिए की गयी थी। इसमें छन्दों के लक्षण भारमल्ल को सम्बोधित करते हुए निबद्ध हैं। भारमल्ल श्रीमाल वंश के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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