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'अग्रवाल' शब्द की प्राचीनता विषयक एक
और प्रमाण
वेद प्रकाश गर्ग
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वैश्य-वर्णान्तर्गत अग्रवाल जाति का विशेष स्थान है। इस जाति का विकास 'अग्रोहा' नामक से हआ माना जाता है। यह स्थान हरियाणा राज्य में हिसार से १४ मील दूर दिल्ली-सिरसा मार्ग पर स्थित है। इस समय यह एक छोटा-सा उजड़ा हुआ गाँव मात्र है, किन्तु प्राचीन-काल में यह अत्यन्त विशाल और समृद्ध नगर था। इसका प्रमाण पुरातात्त्विक महत्त्व के वे टीले हैं, जो इसके निकट लगभग ७०० एकड़ भूमि में फैले हुए हैं। इनकी खुदाई से महत्त्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध हुई है, जिससे इसके प्राचीन गौरव तथा 'आग्रेय गणराज्य' की स्थिति का पता चलता है। अग्रोहा इस गणराज्य का केन्द्र स्थान था।
__आग्रह गणराज्य अर्थात् अग्रोहा से निकास होने के कारण इस जाति को 'अग्रवाल' शब्द से अभिहित किया जाता है। संस्कृत में अग्रवालों के लिए 'अग्रोतकान्वय' आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है और प्राकृत व अपभ्रंश में 'अयरवाल' शब्द से इनका उल्लेख है। 'अयरवाल' शब्द का प्राचीनतम उल्लेख श्रीधर कवि द्वारा सं० ११८९ (११३२ ई०) में दिल्ली में रचित पासणाहचरिउ में हुआ है। उस समय दिल्ली में तोमरवंशीय राजा- अनंगपाल 'तृतीय' का राज्य था। यह 'अयरवाल' शब्द अग्रवाल जाति का सूचक है। कुछ महानुभावों ने 'अयरवाल' एवं 'अग्रवाल' शब्द की एकरूपता को शंकास्पद माना है। परन्तु यह शंका निराधार है।
अग्रजनपद अर्थात् अग्रोहा निवासी (क्योंकि वही अग्रवाल जाति का मूल निकास स्थल था) तदनुसार 'अग्रवाल' शब्द में दो शब्द जुड़े हुए हैं- संस्कृत शब्द 'अग्र' और हिन्दी प्रत्यय 'वाल'। इसमें 'अग्र' शब्द अग्रोहा का द्योतक है और 'वाल' शब्द उसके पूर्व निवास का सूचक है। जिस प्रकार 'खंडेला' से 'खंडेलवाल', 'ओसिया' से 'ओसवाल', 'पाली' से 'पल्लीवाल' या 'पालीवाल' कहलाये, उसी प्रकार अग्रोहा से निकास होने से 'अग्रवाल' कहलाये। अग्रवाल बोलने में मुख सुख से "अगरवाल' हो जाता है। 'अगरवाल' शब्द का छोड़कर मात्र 'अग्रवाल' शब्द का
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१४, खटीकान, मुजफ्फरनगर, उ०प्र०.
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