________________
जैनाचार्यों का छन्द-शास्त्र को अवदान : ४५ श्रावकरत्न नागौरी तपागच्छीय आम्नाय के मानने वाले तथा नागौर देश के संघाधिपति थे। वे शाकम्भरी देश के शासनाधिकारी भी थे।
छन्दोविद्या की २८ पत्रों की हस्तलिखित प्रति दिल्ली के दिगम्बरशास्त्र भण्डार में उपलब्ध है। यह ग्रन्थ अप्रकाशित है। इस ग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय 'अनेकान्तमासिक (सन् १९४१) में प्रकाशित हुआ है। वृत्तजातिसमुच्चय ७ या विरहलाञ्छन
विरहाङ्ककृत प्राकृत-भाषा में निबद्ध इस ग्रन्थ में मात्रावृत्त और वर्णवृत्त की चर्चा है। यह छः परिच्छेदों में विभक्त है- प्रथम परिच्छेद प्रास्ताविक है। इसमें वर्णित छन्दों की सूची तथा मात्रागणों की द्विविधि संज्ञायें दी गयी हैं। द्वितीय तथा तृतीय नियमों में उन द्विपदी छन्दों का क्रमश: उद्देश्य तथा लक्षणोदाहरण दिया गया है। चतुर्थ नियम के आरम्भ में संक्षेप में गाथा, स्कन्धक, गीति तथा उपगीति का सङ्केत किया गया है। तदनन्तर ८० के लगभग मात्रा वृत्तों का विवरण दिया गया है। ग्रन्थ के पञ्चम नियम में विरहाङ्क के उन ५२ वर्णिक छन्दों का लक्षण दिया है, जो प्राय: संस्कृत कवियों द्वारा प्रयुक्त किये जाते थे। इस नियम के लक्षण भाग की भाषा संस्कृत ही है। षष्ठ नियम में प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट, लघुक्रिया, संख्यका तथा अध्वा इन छ: प्रकार के छन्दः प्रस्तारों की गण-प्रक्रिया पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
प्रस्तार के अन्तर्गत- (१) सूची, (२) मेरु, (३) पताका, (४) समुद्र, (५) विपरीत-समुद्र, (६) पाताल, (७) शाल्मली तथा (८) विपरीत शाल्मली- इन आठ भेदों की गणन-प्रक्रिया का उल्लेख है। छठे नियम के श्लोक ५२-५३ में एक कोष्ठक दिया गया है, जो इस प्रकार है४ अंगुल
१ राम ३ राम
१ वितस्ति २ वितस्ति
१ हाथ २ हाथ
१ धनुर्धर २००० धनुर्धर
१ कोश ८ कोश
१ योजन इसकी एक हस्तलिखित प्रति वि०सं० ११९२ की मिलती है। गाथालक्षण अपरनाम नन्दिताढ्यछन्दःसूत्र८
नन्दिताढ्य विरचित इस ग्रन्थ में ९६ प्राकृत गाथाएँ हैं। ग्रन्थ के प्रथम पद्य में गाथा लक्षण, ग्रन्थ और उसके रचयिता नन्दिताढ्य का उल्लेख है। नन्दिताढ्य द्वारा मङ्गलाचरण में नेमिनाथ, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर की वन्दना की गयी है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org