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प्रकार है
जैनाचार्यों का छन्द-शास्त्र को अवदान :
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(अ) संस्कृत कृतियाँ
स्वयम्भूच्छन्दस्'
प्राकृत में निबद्ध यह कृति आठ अध्यायों में विभक्त है। इसके प्रथम अध्याय में शक्री से उत्कृति तक १३ वर्गों में ६३ वर्ण वृत्तों, द्वितीय में १४ अर्धसमवृत्तों और तृतीय में विषम वृत्त का विवेचन है। चतुर्थ से अष्टम अध्याय तक अपभ्रंश छन्दों का प्रतिपादन है। चतुर्थ अध्याय में उत्साह, दोहा और उसके भेद, मात्रा - भेद, रड्डा, वदन, उपवदन, मर्डिला, सुन्दरी, हृदययिनी (हियालिया) धवल तथा मङ्गल छन्दों में छः पादों के २४ छन्दों की गणना जाति, उपजाति और अवजाति वर्गों के अन्तर्गत करते हुए की गयी है। षष्ठ अध्याय में ११८ प्रकार के चतुष्पदी छन्दों ( ११० अर्द्धसम और ८ सर्वसम) और ४० प्रकार के द्विपदी छन्दों के लक्षण तथा उनमें कुछ के उदाहरण उपलब्ध हैं। सप्तम अध्याय में १० चतुष्पदी छन्दों और द्विपदी छन्दों में केवल लक्षण वर्णित है। अन्तिम (अष्टम) अध्याय में उत्थक्क, मदनावतार, धुवक, ७ छड्डणिका - भेद, उद्धत्ता-भेद, पद्धडिका तथा द्विपदी छन्द उल्लिखित हैं। इनमें सभी लक्षित छन्द सोदाहरण नहीं हैं।
स्वयम्भू ने वर्णवृत्तों को हेमचन्द्र और विरहांक की भाँति अक्षर संख्या के अनुसार २६ वर्गों में विभाजित करने का अनुसरण तो किया किन्तु उन दोनों विपरीत इन छन्दों को संस्कृत का छन्द न मानकर प्राकृत काव्य से उनके उदाहरण दिये हैं।
उल्लेखनीय है कि स्वयम्भूच्छन्दसकार के विषय में आधुनिक विद्वानों में मतैक्य नहीं है। पं० राहुल सांकृत्यायन, प्रो० एच०डी० वेलणकर तथा प्रो० हीरालाल जैन ने इस विषय पर अपना मन्तव्य प्रस्तुत किया है। सांकृत्यायन ने पउमचरिउकार स्वयम्भू को ही प्रस्तुत छन्द ग्रन्थ का कर्ता मानते हुए उनका समय ७९० ई० निर्दिष्ट किया है। प्रो० वेलणकर ने स्वयम्भूच्छन्दस् के लेखक को कवि स्वयम्भू से भिन्न मानते हुए उनका समय १०वीं शताब्दी अनुमानित किया है। प्रो० हीरालाल जैन ने भी हरिवंशपुराण और पउमचरिउ के कवि स्वयम्भू को ही प्रस्तुत छन्द ग्रन्थ का कर्ता स्वीकार किया है। समय निर्धारण की दृष्टि से प्रो० वेलणकर का अभिमत अधिक सङ्गत लगता है और तदनुसार स्वयम्भूच्छन्दस् का समय १० वीं शताब्दी के पूर्व निश्चित रूप से माना जा सकता है।
जयदेव छन्दस् (९१० ई०)
हलायुध और केदारभट्टकृत वृत्तरत्नाकर के टीकाकार सुल्हण (१९८९ ई० ) द्वारा जयदेव को 'श्वेतपट ' विशेषण से उल्लिखित करने से यह प्रतीत होता है कि इस ग्रन्थ के कर्ता श्वेताम्बर जैनाचार्य जयदेव थे। सम्भवतः जयदेव ने अपना छन्दोग्रन्थ
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