________________
४० : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर २००२ संस्कृत-भाषा में पिङ्गल के आदर्श पर रचा है। उनकी तरह अपने ग्रन्थ के आठ अध्यायों में से प्रथम अध्याय में संज्ञाएँ, द्वितीय, तृतीय में वैदिक छन्दों का निरूपण और चतुर्थ से लेकर अष्टम अध्याय में लौकिक छन्दों के लक्षण दिये हैं। जयदेव ने अध्यायों का आरम्भ ही नहीं, उनकी समाप्ति भी पिङ्गल के अनुरूप की है। इस ग्रन्थ पर हर्ष (सन् १२२४ ई०) और श्रीचन्द्रसूरि (१३वीं शताब्दी) द्वारा रचित दो वृत्तियाँ प्राप्त होती हैं। छन्दःशेखर (ईसा की ११वीं शती)
ठक्कुर दुद्दक और नागदेवी के पुत्र राजशेखर ने इस कृति की रचना की थी। ऐसा कहा जाता है कि यह ग्रन्थ भोजदेव को प्रिय था। हेमचन्द्राचार्य ने भी इस ग्रन्थ का उपयोग अपने छन्दोऽनुशासन में किया है। इस ग्रन्थ की एक हस्तलिखित प्रति वि०सं० ११७९ की मिलती है। छन्दोऽनुशासन-जयकीर्ति
इस ग्रन्थ के कर्ता दिगम्बर जैन मतावलम्बी जयकीर्ति (समय लगभग १००० ई०) कन्नड-प्रदेश के निवासी थे। उनका छन्दोऽनुशासन संस्कृत-भाषा में निबद्ध है
और पिङ्गल और जयदेव की परम्परा के अनुसार आठ अधिकारों में वर्गीकृत है। यह ग्रन्थ आद्योपान्त पद्यबद्ध है। सामान्य विवेचन के लिए अनुष्टुप, आर्या और स्कन्धइन तीन छन्दों का आश्रय लिया गया है किन्तु छन्दों के लक्षण पूर्णत: या अंशत: उन्हीं छन्दों में हैं, जिनके वे उदाहरण हैं। स्वतन्त्र रूप से उदाहरण नहीं दिये गये हैं। इस प्रकार इस ग्रन्थ में छन्दों का विवेचन, लक्षण और उदाहरण तादात्म्य शैली में किया गया है। संक्षेप में छन्दोऽनुशासन की विषयवस्तु इस प्रकार है
प्रथम अधिकार में संज्ञा वर्णन, द्वितीय अधिकार में उक्ता से लेकर उत्कृति जाति तक के सम वर्णित छन्दों का वर्णन, तृतीय अधिकार में अर्द्धसम वर्ण-वृत्त तथा चतुर्थ अधिकार में विषम वर्ण-वृत्त वणिर्त है। पञ्चम अधिकार में आर्या तथा मात्रासमक वर्ग के मात्रिक छन्द तथा षष्ठ अधिकार में वैतालीय वर्ग के मात्रिक छन्दों के अतिरिक्त द्विपदी, अंजनाल, कामलेखा, उत्सव, महोत्सव तथा रमा नामक छन्द और वर्णिक दण्डक प्रतिपादित है। सप्तम अधिकार ‘कर्णाट विषय भाषा जात्याधिकार' है, जिसमें कन्नड़ भाषा के छन्द निर्दिष्ट हैं। अष्टम अधिकार का सम्बन्ध प्रस्तारादि प्रत्ययों से है। ___ छन्द ग्रन्थों में अब तक अनुल्लिखित, मात्रिक छन्दों की दृष्टि से यह ग्रन्थ बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि जयदेव की तरह जयकीर्ति की प्रवृत्ति व्यावहारिक लोक प्रयोग के आधार पर छन्दोल्लेख की ओर है। जयकीर्ति ने ऐसे बहुत से मात्रिक छन्दों का उल्लेख किया है जो जयदेव के ग्रन्थ में नहीं हैं किन्तु ऐसे छन्दों में अधिकांश के प्रथमोल्लेख का गौरव विरहाङ्क को है। इसके बाद भी संस्कृत के लक्षणकारों में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org