________________
२८ : श्रमण/जुलाई-दिसम्बर २००२ विभिन्न रूपों में वर्णित है।
'स्त्री-व्यन्तरी' के विषय में कारणिक - नामक कथा में कहा है कि एक युवा पुरुष गाड़ी पर अपनी पत्नी को लेकर कहीं जा रहा था। रास्ते में पत्नी को प्यास लगी अत: पानी पीने के लिए गाड़ी से उतरकर वह गयी। इतने में एक व्यन्तरी ने उस पुरुष को देखा और उस पर मुग्ध हो गयी। वह व्यन्तरी उस युवा की पत्नी का रूप बनाकर गाड़ी में आकर बैठ गयी। युवक ने उसे अपनी पत्नी समझा और गाड़ी आगे बढ़ा दी। पत्नी पानी पीकर लौटी और देखा कि गाड़ी तो आगे बढ़ गयी है तो वह रोने लगी। उसने चिल्लाकर अनेक प्रकार से अपने पति को गाड़ी रोकने के लिए आवाज लगायी। युवक ने गाड़ी रोकी और इन दोनों स्त्रियों की समान आकृति देखकर उसे महान् आश्चर्य हुआ।२२
इसके अन्तर्गत कुछ मनोरंजक आख्यान इस प्रकार हैं - किसी रक्तपट (बौद्ध भिक्षु) ने एक क्षुल्लक से पूछा--- ‘इस विनातट (वेन्यातर) नगर में कितने कौवे हैं? क्षुल्लक ने उत्तर दिया- साठ हजार कौवे हैं। तब भिक्षु ने पुन: प्रश्न किया- यदि साठ हजार से कम या ज्यादा हुए तब?' क्षुल्लक ने तुरन्त उत्तर दिया - यदि कम हुए तब यह समझना चाहिए कि कुछ कौवे विदेश चले गये और यदि अधिक हैं तब समझना चाहिए कि बाहर से कुछ और कौवे अतिथि के रूप में आ गये हैं। ऐसा उत्तर सुनकर शाक्यपुत्र भिक्षु निरुत्तर होकर रह गया।२३
इसी प्रकार एक बार किसी शाक्य भिक्षु ने एक गिरगिट को अपना सिर धुनते हुए देखा। एक क्षुल्लक से वह उपहासपूर्वक बोला- तुम तो सर्वज्ञ पुत्र हो, अत: यह बतलाओ कि यह गिरगिट अपना सिर क्यों धुन रहा है? उस क्षुल्लक ने तुरन्त उत्तर दिया - 'शाक्यव्रती! तुम्हें देखकर चिन्ता से आकुल हो यह ऊपर-नीचे देख रहा है। तुम्हारी दाढ़ी-मूंछ देखकर इसे लगता है कि तुम भिक्षु हो, लेकिन जब वह तुम्हारे लम्बे चीवर को देखता है तो तुम इसे भिक्षुणी नजर आते हो। यही कारण है कि यह गिरगिट अपना सिर धुन रहा है। यह सुनकर बेचारा भिक्षु निरुत्तर रह गया।
उपदेशपद में इसी तरह के और भी मनोरंजक आख्यान दिये गये हैं। ‘कच्छप का लक्ष्य' २५ तथा 'युवकों से प्रेम' २६ नामक कथाएँ व्यंग्य प्रधान हैं।
विविध आख्यानों के माध्यम से हरिभद्रसरि ने औत्पत्तिकी आदि चारों प्रकार की बुद्धि की विशेषताएँ प्रगट की हैं। बिना देखे, बिना सुने और बिना जाने विषयों को उसी क्षण में अबाधित रूप से ग्रहण करना तथा तत्सम्बन्धी चमत्कारों को कथाओं द्वारा दिखलाना ही इन कथाओं का उद्देश्य है।
संख्या तथा मार्मिकता की दृष्टि से हरिभद्र की लघु कथाओं में बुद्धि चमत्कार प्रधान कथाओं का स्थान महत्त्वपूर्ण है। इस श्रेणी की कथाओं का शिल्प विधान नाटकीय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org