________________
७४
Jain Education International
१९७
१९७
श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री गोपीचन्द धाड़ीवाल श्री भंवरलाल नाहटा श्री नन्दलाल मारु श्री कस्तूरमल बांठिया श्री सनत्कुमार रंगाटिया डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव श्री अगरचन्द नाहटा Dr. M. L. Mehta डॉ० देवेन्द्र कुमार डॉ० सुनीति कुमार चाटुा
१९
१९
पृष्ठ २३-२५ २६-३४ ३५-३८ ७-११ १२-२५ २६-२९ ३०-३१ ३२-३९
लेख संसार का अन्तरंग प्रदेश मंगलकलश कथा नई पीढी और धर्म अभव्यजीव नवग्रैवेयक तक कैसे जाता है ? विद्याविलासरास आचार्य वादिराजसूरि पं० रामचन्द्रगणिरचित सुमुखनृपति काव्य Some Important Prakrit Work मानवमूल्यों का काव्य भविसयत्तकहा प्राकृत का अध्ययन श्रवणबेलगोला के शिलालेख, दक्षिणभारत में जैनधर्म और गोम्मटेश्वर महावीर का वीरत्व श्री बालाभाई वीरचन्द देसाई 'जयभिक्खू' भारतीय बाङ्गमय में प्राकृतभाषा का महत्त्व कवि रत्नाकर और रत्नाकरशतक अभय कुमार श्रेणिकरास (क्रमश:) दसधर्म योग साधना है
ई० सन् १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८
१९
9 9 9 vvvvv - or
For Private & Personal Use Only
१९
१०-१२
१९
or or
or
श्री गणेश प्रसाद जैन डॉ० भानीराम वर्मा श्री कस्तूरमल बांठिया पं० बेचरदास दोशी डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव डॉ० श्रीसनत्कुमार रंगाटिया श्री अर्हसबंडोबा दिमे
१९
१०
१९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८
१३-२१ २२-२७ २८-३७ ६-१६ १७-२४ २५-३० ३१-३६
www.jainelibrary.org
१९ १९
१०