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श्रमण : अतीत के झरोखे में
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ई० सन् १९७० १९६५
२५५ पृष्ठ । २०-२७ ३-७
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श्रावकप्रज्ञप्ति के रचयिता कौन ? के बीना निर्मल
धर्म और युवा पीढ़ी ना बी० सी०जैन तीर्थंकर बुद्धमल्ल जी मुनि पुद्गल : एक विवेचन बूलचन्द जैन विश्व अहिंसा संघ और प्रवृत्तियां है बेचरदास दोशी
अंग ग्रंथों का बाह्य रूप अनन्य साथी का वियोग अब कहाँ तक अस्पृश्यता और जैन धर्म आगमों के सम्पादन में कुछ विचार योग्य प्रश्न आचारांग में उल्लेखित ‘परमत'
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