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श्रमण : अतीत के झरोखे में तथा विभिन्न कलावशेषों के बारे में जानकारी प्राप्त की । ज्ञातव्य है कि पाण्डुलिपियों को छोड़कर इस संग्रहालय में प्रदर्शित अधिकांश कलाकृतियां श्री सुरेन्द्र मोहन जैन ने स्वयं इकत्र की थी और उन्हें लम्बे काल तक अपने संरक्षण में रखने के पश्चात् प्रो० सागरमल जैन की प्रेरणा से अब पार्श्वनाथ विद्यापीठ को समर्पित कर दिया है।
अभिनन्दन समारोह, नूतन ग्रन्थों के विमोचन आदि के पश्चात् जैन अध्ययन : समीक्षा एवं सम्भावनायें नामक राष्ट्रीय संगोष्ठी आरम्भ हुई । इसके प्रथम सत्र की अध्यक्षता बौद्ध दर्शन के विशिष्ट विद्वान प्रो० रमाशंकर त्रिपाठी ने की। इस सत्र में डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव, डॉ० अजित शुकदेव शर्मा, श्री हजारीमल बांठिया, समणी सम्बोध प्रज्ञा जी आदि के शोधपत्रों का वाचन हुआ ।
संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में दि० ६-४-९८ को समणी कसमप्रज्ञा, समणी शुभप्रज्ञा, डॉ० कमला जैन, डॉ० सुदर्शन लाल जैन, डॉ० धर्मचन्द जैन, डॉ० मुकेश जैन आदि ने अपने-अपने शोध पत्रों का वाचन किया।
संगोष्ठी के तृतीय सत्र में उसी दिन पाटण (गुजरात) से पधारे डॉ० दीनानाथ शर्मा, श्री विश्वनाथ पाठक, डॉ० विजय कुमार जैन, डॉ० अरुण प्रताप सिंह, डॉ० अशोक कुमार सिंह, डॉ० बी० एन० सिन्हा, श्री अतुल कुमार आदि ने अपने-अपने शोध पत्र पढ़े।
दि० ७-४-९८ को प्राचीन शोध छात्रों के पुनर्मिलन का भव्य कार्यक्रम रहा । इसके अन्तर्गत माननीय श्री भूपेन्द्र नाथ जैन द्वारा प्रत्येक पूर्व शोध छात्र को शाल, संस्थान का प्रतीक चिन्ह एवं एक आकर्षक अटैची प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस समारोह में इन विद्वानों ने विद्यापीठ और स्वयं के सम्बन्धों पर प्रकाश डालते हुए अपने विकास में पार्श्वनाथ विद्यापीठ के बहुमूल्य योगदान का स्मरण किया।
संगोष्ठी के अंतिम सत्र में डॉ० फूलचन्द जैन 'प्रेमी' डॉ० मुन्नी पुष्पा जैन आदि के शोधपत्र पढ़े गये । इस सत्र की अध्यक्षता सारनाथ संग्रहालय के निदेशक महोदय ने की।
इस अवसर पर विमोचित होने वाले ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं। प्रो० सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ श्री भूपेन्द्रनाथ जैन अभिनन्दन ग्रन्थ जैन साधना में तंत्र
डॉ० सागरमल जैन जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय
डॉ० सागरमल जैन हिन्दी जैन साहित्य का बृहद इतिहास भाग ३ डॉ० शीतिकंठ मिश्र
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