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श्रमण : अतीत के झरोखे में
श्री रतनलाल जी मोदी दिवंगत जैन धर्मदिवाकर आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्रमुनि जी महाराज के शिष्य श्री दिनेशमुनि जी महाराज के संसारपक्षीय पिता श्री रतनलाल जी मोदी का पिछले २९ अगस्त को ८६ वर्ष की आयु में निधन हो गया । आप अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं । पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिवार की ओर से स्वर्गीय श्री मोदी जी को हार्दिक श्रद्धांजलि ।
साहित्य सत्कार श्रीवाग्भट विरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन
लेखक - डॉ० अनिरुद्ध कुमार शर्मा, प्रकाशक-सन्मति प्रकाशन, २६१/३, पटेलनगर, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश, पृष्ठ १२+२२६+९, मूल्य- ३५०.००, प्रकाशन वर्ष १९९८ ई० स० ।
प्रस्तुत पुस्तक डॉ० अनिरुद्ध कुमार शर्मा के शोध प्रबन्ध श्रीमद्वाग्भट विरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन का मुद्रित संस्करण है जिसे उन्होंने जैन साहित्य के युवा मनीषी, प्रसिद्ध विद्वान डॉ० जयकुमार जैन के निर्देशन में पूर्ण किया और उसपर उन्हें मेरठ विश्वविद्यालय द्वारा पीएच०डी की उपाधि प्राप्त हुई । यह ग्रन्थ ८ अध्यायों में विभक्त है । प्रथम अध्याय में ३ खंड हैं । पहले खंड में जैन चरित काव्य परम्परा के उद्भव और विकास का प्रारम्भ से लेकर २०वीं शती तक का सर्वेक्षण प्रस्तुत है । द्वितीय खंड में नेमिनाथ विषयक प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, गुजराती, मराठी, हिन्दी, कन्नड़ आदि विभिन्न भाषाओं में रचित साहित्य का संक्षिप्त विवरण है । तीसरे खण्ड में रचनाकार के कुल, सम्प्रदाय, तिथि आदि की चर्चा है । द्वितीय अध्याय भी तीन खण्डों में विभक्त है। इसमें नेमिनिर्वाण की कथावस्तु का वर्णन है। तृतीय अध्याय में ग्रन्थ में प्रयुक्त रस, महाकाव्यत्व, छन्दयोजना, अलंकार आदि का विवेचन है । चौथे और पांचवें अध्यायों में क्रमश: भाषा शैली और वर्णन वैचित्र्य का चित्रण है। छठे अध्याय में ग्रन्थ में प्राप्त दर्शन एवं संस्कृति का विवरण है। सातवें अध्याय में रचनाकार पर कालिदास, भर्तृहरि, भारवि, वाणभट्ट, माघ, हरिचन्द आदि के प्रभाव को दर्शाने के साथ-साथ परवर्ती रचनाकारों पर वाग्भट के प्रभाव को भी दर्शाया गया है । आठवां अध्याय उपसंहा के रूप में है। प्रत्येक विषयों का प्रभावशाली एवं प्रामाणिक रूप से प्रस्तुतीकरण इस पुस्तक की विशेषता है। इसका प्रत्येक पृष्ठ लेखक के श्रम का साक्षी है। ऐसे प्रामाणिक ग्रन्थ के प्रस्तुतीकरण के लिए लेखक और प्रकाशक दोनों बधाई के पात्र हैं । ग्रन्थ का मुद्रण निर्दोष तथा साजसज्जा चित्ताकर्षक है । यह ग्रन्थ जैन साहित्य का अध्ययन करने वाले प्रत्येक शोधार्थियों
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