Book Title: Sramana 1998 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 367
________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में पुरुषों और महिलाओं का समान रूप से योगदान रहा है। जहां पुरुषों ने आन्दोलन में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेकर कर्बानियां दीं, वहीं उनके घरों की महिलाओं ने न केवल उन्हें प्रेरणा दी बल्कि उन्हें सभी प्रकार की पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त भी रखा । अनेक शिक्षित महिलाओं ने तो घर की चारदीवारी से निकल कर पुरुषों के समान ही राष्ट्रीय आन्दोलन में अपनी पूर्णाहुति दी । श्रीमती जैन ने प्रस्तुत लघु पुस्तक में अत्यन्त श्रमपूर्वक ऐसी ही जैनधर्मानुयायी महिलाओं की शौर्यगाथा को प्रस्तुत किया है जिनके बारे में आज समाज को अत्यल्प ही जानकारी है । ऐसे गौरवपूर्ण प्रकाशक के लिये लेखिका और प्रकाशक दोनों ही अभिनन्दनीय हैं । जैनधर्म एवं आत्मसाधना - लेखक, श्रीअमरचन्द छाजेड़, प्रकाशक, अमरचन्द अशोक कुमार छाजेड़, छाजेड़ चेम्बर्स, १९३ मिन्ट स्ट्रीट, पार्क टाउन, मद्रास ६००००३; पृष्ठ १४४, मूल्य-सदुपयोग, प्रकाशन वर्ष १९९७ ई० स० ।। प्रस्तुत पुस्तक में जैनधर्म का संक्षिप्त परिचय, मंगलमय प्रार्थनायें, प्रेरणादायक गीत, मेरी भावना, लघु साधु वन्दना, भक्तामर स्तोत्र, आत्मसिद्धि शास्त्र, अर्थसहित सामायिकसूत्र आदि का अनूठा संकलन है जो नित्य स्वाध्याय के लिये उपयोगी है । हमें विश्वास है कि सरल भाषा में लिखी गयी इस लघु पुस्तिका का सर्वत्र आदर होगा । पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक एवं मुद्रण त्रुटिरहित है। आत्मवैभव - लेखिका श्रीमती रतन चौरड़िया, प्रका०-कल्याणमल चंचलमल चौरड़िया ट्रस्ट, C/o चौरड़िया इलेक्ट्रिकल्स, चौरड़िया भवन, जालौरी गेट के बाहर, जोधपुर ३४२००३, पृष्ठ १६+११२, प्रकाशन वर्ष १९९८ ई० स० । प्रस्तुत पुस्तिका में विदुषी लेखिका ने आत्मा के गुणों एवं क्षमताओं का दिग्दर्शन कराते हुए पंचपरमेष्ठी अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु-साध्वी की विशिष्टताओं का विवेचन करते हुए उनकी शरण में जाने की प्रेरणा देते हए बतलाया है कि आत्मा की अनन्त शक्ति को अज्ञानी मनुष्य पहचान नहीं पाता किन्तु यदि वह अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व आदि बारह भावनाओं का चिन्तन करे तो निश्चय ही उसकी दृष्टि बदल सकती है । पुस्तक की भाषा अत्यन्त सरल और सुबोध है तथा यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए पठनीय है। सर्वोदयी जैन तंत्र - लेखक, डॉ० नन्दलाल जैन, प्रकाशक, श्री कपूरचन्द जैन पोतदार, अध्यक्ष, पोतदार धार्मिक एवं पारमार्थिक न्यास, पोतदार निवास, टीकमगढ़, मध्यप्रदेश;पृष्ठ १८+८२; मूल्य २५.००, प्रकाशन वर्ष १९९७ ई०स० प्रस्तुत कृति जैन विद्या के विशिष्ट विद्वान्, प्रबुद्ध चिन्तक और सुप्रसिद्ध लेखक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 365 366 367 368 369 370