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वर्ष
अंक
२६५ पृष्ठ ।
ई० सन्
Jain Education International
१९८४
१६-२०
१९५४
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श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख
ममता गुप्ता • जैन दर्शन और अरविन्द दर्शन में एकत्व और अनेकत्व सम्बन्धी विचार • मशरूवाला
आत्मा का बल युवाचार्य महाप्रज्ञ ए अंहिसा की समस्याएँ
जैन साहित्य में चैतन्य केन्द्रों का निरूपण प्रतिक्रिया है दु:ख मन की शक्ति बनाम सामायिक शुद्ध-अशुद्ध भावधारा
शुद्धि चिकित्सा और सिद्धि का महान् पर्व संवत्सरी है स्वभाव-परिवर्तन
महावीर चंद धारीवाल सर्वोदय और जैनदृष्टिकोण
महावीरप्रसाद गैरोला है मनुष्य की परिभाषा महावीरप्रसाद 'प्रेमी' वैशाली और भगवान् महावीर का दिव्य सदेश
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