________________
१९०
श्रमण : अतीत के झरोखे में
Jain Education International
ई० सन् १९६६ १९५७ १९६० १९६३
For Private & Personal Use Only
लेख आचारांग का परिचय कषाय विजय का महापर्व नए अपवाद पद्मलेश्या के रस का उपमेय मद्य क्यों ? पर्युषण और पश्चात्ताप पर्युषण मीमांसा भगवान् महावीर का व्यक्तित्व मनुष्य जन्म या मानवता राम की क्षमायाचना श्रमण संघ के सामने एक सवाल ! हमारे कवल (ग्रास) को मुर्गी के अण्डे की उपमा क्यों ? कन्हैयालाल भुरडिया भारतीय संस्कृति को भगवान् महावीर की देन कन्हैयालाल सरावगी आत्मा : बौद्ध एवं जैन दृष्टि ग्यारह प्रतिमा (व्रत) और एकादशी जगतः सत्य या मिथ्या
पृष्ठ २७-३५ ३-५ २२-२ ९-११ २८ १७-२१ १७-२३ ४१-४४ ३३-३४ २६-२९ ३०-३२
१९५५ १९५७ १९६० १९५९ १९६० १९६४
९ १२
१९६०
२७-२९
१२
www.jainelibrary.org
१९७३ १९७८ १८-२३ १९८८५-११