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१५५ ई० सन् पृष्ठ १९९५ १३४-१४९ १९९५ १५०-१६५
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श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख
लेखक सदाचार के शाश्वत मानदण्ड
जैन धर्म का लेश्या-सिद्धान्त : एक विमर्श ॐ प्रज्ञापुरुष पं० जगन्नाथ जी उपाध्याय की
दृष्टि में बुद्ध व्यक्ति नहीं प्रक्रिया युगीन परिवेश में महावीर स्वामी के सिद्धान्त भक्तामरस्तोत्र : एक अध्ययन
डॉ० हरिशंकर पाण्डेय नागेन्द्रगच्छ का इतिहास
डॉ० शिवप्रसाद अर्धमागधी भाषा में सम्बोधन का एकविस्मृत शब्द-प्रयोग ‘आउसन्ते' ।
डॉ० के० आर० चन्द्र चातुर्मास : स्वरूप और परम्पराएँ
श्री कलानाथ शास्त्री £ वाचक श्रीवल्लभरचित 'विदग्धमुखमंडन' की दर्पण टीका की पूरी प्रति अन्वेषणीय है
स्व० अगरचन्द नाहटा द्रौपदी कथानक का जैन और हिन्दू स्रोतों के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन
श्रीमती शीला सिंह गांधी जी के मित्र और मार्गदर्शक : श्रीमद्राजचन्द्र डॉ० सुरेन्द्र वर्मा भगवान् महावीर की निर्वाण तिथि : एक पुनर्विचार डॉ० अरुण प्रताप सिंह तरंगलोला और उसके रचयिता से सम्बन्धित-भ्रान्तियों का निवारण पं० विश्वनाथ पाठक
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