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श्रमण विद्या - २
के कारण जैनपरम्परा में आध्यात्मिक विश्लेषण को पर्याप्त अवकाश मिला, इसलिए प्राकृत आगमों तथा संस्कृत ग्रन्थों में संवर का आध्यामिक स्वरूप भी विस्तार के साथ विवेचित किया गया । अनात्मवादी होने के कारण बौद्ध साहित्य में संवर का विश्लेषण प्रायः आचारपरक ही हुआ । अभिधर्म के अन्तर्गत उसकी दार्शनिक व्याख्या करने का भी प्रयत्न किया गया है ।
संवर का आध्यात्मिक विश्लेषण करते हुए जैन परम्परा में इसे आत्मा के उन सात्त्विक परिणामों से सम्बद्ध किया गया है, जिनसे नवीन कर्मों का आना और आत्मा के साथ सम्बद्ध होना रुक जाता है । इससे मोक्ष या निर्वाण की ओर उन्मुख साधक के आध्यात्मिक विकास की आधारशिला निर्मित हो जाती है । संवर की स्थिति में वह ध्यान की भूमिका को प्राप्त करके पूर्वसंचित कर्मों से मुक्त होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर देता है । यह प्रक्रिया उसके आध्यात्मिक सोपानों के आधार पर तीव्रतर और तीव्रतम होती जाती है, जिससे वह जिन या अर्हत् की स्थिति को प्राप्त करता है । आध्यात्मिक विकास की यह प्रक्रिया जिस प्रकार चलती है, उसका विशेष विवेचन ध्यान और योग से सम्बन्धित ग्रन्थों में प्राप्त होता है । प्राकृतागमों में संवर को सात तत्त्वों या नौ पदार्थों के अन्तर्गत गिनाकर और बन्ध के बाद उसकी गणना करके इस दार्शनिक व्याख्या का आधार निर्मित किया गया है। शौरसेनी आगम इसी आधार पर आत्मा के परिणामों की दृष्टि से संवर की व्याख्या करते हैं । कुन्दकुन्दादि आचार्यों ने यहाँ तक लिखा है कि शुभ अशुभ दोनों प्रकार के परिणामों का रुकना आवश्यक है, क्योंकि जिस प्रकार अशुभ परिणाम पापास्रव के कारण होते हैं उसी प्रकार शुभ परिणाम पुण्यास्रव के कारण होते हैं । आध्यात्मिक विकास के लिए अन्ततः इन दोनों ही प्रकार के परिणामों का रुकना आवश्यक है मात्र आत्मा के विशुद्ध परिणाम ही पुण्य और पाप दोनों के संवर के कारण होते हैं । यही मोक्ष या निर्वाण के लिए कार्यकारी है । संवर के इस आध्यात्मिक स्वरूप को भावसंवर के नाम से कहा गया है। संवर के आध्यात्मिक विश्लेषण के सन्दर्भ में जो पारिभाषिक शब्दावली विकसित हुई उसके अन्तर्गत अशुभ आव के कारण मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, कषाय, योग तथा रागद्वेष और मोह को लिया गया है । सम्यक्त्व या सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषहजय, तथा चारित्र शुभास्रव के कारण बताये गये हैं । इनको शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के संवर में भी कारण कहा गया है । इस मीमांसा की गई है । शुभास्रव के कारणों का विवेचन विशेष रूप से किया गया है ।
शब्दावली की विस्तार से आचारशास्त्रीय सन्दर्भों में
संकाय पत्रिका - २
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