Book Title: Shramanvidya Part 2
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 256
________________ 19, 47 56 53 18 अवचूरिजुदो दयसंगहो तह-तथा 13 दुवियप्पो-दो प्रकार का तिक्काले-तीनों कालों में 3 दुविहं तिय-तीन 30 दुविहा-दो प्रकार की 36 तिविह-तीन प्रकार के दुस्सह-द्वेष करो तु-और 41, 42, 44 देविंदविंदवंदं- देवेन्द्र समूह से वन्दनीय 1 तेण-उससे 25, 26 दो-दो ,44 तेणेदे-उससे यह, ये दोस-संचयचुदा-दोष समूह से रहित 58 ते-वे 22, 28, 44 [ध] तोयं-जल धम्माधम्मा-धर्म-अधर्म 20 [य] धम्माधम्मे-धर्म और अधर्म में थिरं-स्थिर 48 धम्माणुपेहापरीसहजओ-धर्म-अनुप्रेक्षा थिरो-स्थिर और परीषह जय 35 थूलो-स्थूल 16 धम्मो-धर्म 15, 17 [व] धम्मोवदेसणे-धर्मोपदेश में दसणं-दर्शन 4, 6, 43 धरई दसणणाणपहाणे-दर्शन और ज्ञान [ ] में प्रधान 52 ठाणजुदाण-स्थान युक्तों को . 18 दसण-णाण-समग्गं-पूर्ण दर्शन-ज्ञानी 54 ठाणसहयारी-स्थिति देने में सहकारी 18 दसणपुव्वं-दर्शनपूर्वक 44 ठिदिअणुभागा-स्थिति और अनुभाग 33 दंसणसुहणाणवीरियमइओ-- दर्शन ठिया-स्थित हैं ___ सुख, ज्ञान और वीर्य युक्त 50 [प] दट्टा-(दृष्टा) देखने वाले 51 पंच-पाँच 7,23 दव्वं-द्रव्य 1.23 पंचेंदिय-पाँच इन्द्रियों वाले दव्वपरिवट्टरूवो-द्रव्य परिवर्तन रूप 21 पच्चक्ख-परोक्ख---प्रत्यक्ष और परोक्ष 5 दवविमोक्खो-द्रव्यमोक्ष 37 पज्जत्त-पर्याप्तक 12 दव्धसंगहमिणं-यह द्रव्य संग्रह पज्जाया–पर्याय 16 दव्वासवरोहणे-द्रव्यास्रव रोकने में 34 पण-पांच 30 दवासवो-द्रव्यास्रव 31 पणतीस-पैंतीस दु-भी, और 3, 8, 15, 23,30, 32, पणदस-पन्द्रह 33, 34 पदेसा - प्रदेश दुगं-दो, 49 पभणामो-- कहते हैं 44 पशुंजेदि-भोगता है दुरभिणिवेसविमुक्क-दुरभिनिवेश रहित 41 पयत्तचित्ता-प्रयत्न चित्त होकर संकाय पत्रिका-२ 22 12 58 28 दुण्णि-दो A Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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