Book Title: Shramanvidya Part 2
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 257
________________ २३८ श्रमणविद्या 56 16, 33 21 46 24 38 पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसभेदा-प्रकृति [ब] स्थिति-अनुभाग प्रदेश के भेद से 33 बज्झदि-बांधता है पयडिपदेशा-प्रकृति-प्रदेश 33 बंधादो-बंध से परं-दूसरों को, उत्कृष्ट बंधो-बन्ध परदो-चारों ओर बलं-बल परमं - परम, (उत्कृष्ट) 46 बहिरभंतरकिरियारोधो-बाह्य और परमट्ठो-निश्चय आभ्यन्तर क्रियाओं को रोकना परमेट्ठिवाचयाणं-परमेष्ठियों के वाचक 49 बहुदेसा-बहुत प्रदेश वाला पराणि-अन्य, दूसरे बहुदेसो-बहुप्रदेश वाला परिणामादीलक्खो-परिणामादि लक्ष्य 21 बहुभेदा-अनेक भेद परिणामेणप्पणो-आत्मा के परिणामों से 29 [भ] परिणामो-परिणाम 37 भणंति-कहते हैं 24, 26 परे-शेष भण्णए---कहलाता है 43 परो-अन्य, द्वितीय भणियं-कहा गया 6,58 पवित्ती-प्रवृत्ति (लगना) भवकारणपणासठ्ठ--संसार के कारण पहियाणं-पथिकों को के नाश के लिए 46 पाउणदि-पाता है भावबंधो-भावबन्ध पावं-पाप भावमोक्खो-भावमोक्ष पि-भी भावसंवरो-भावसंवर पुग्गलं-पुद्गल को भावाणं-भावों का पुग्गल-पुद्गल भावासवो-भावात्रव पुग्गलकम्मप्फलं पुद्गल कर्मों के फल 9 भावेण-भाव से पुग्गलकम्मादीणं-पुद्गल कर्म आदि का 8 भुत्तरसं - फल देकर (भुक्तरस होकर) पुग्गलजीवा-पुद्गल-जीव 20 भावसंवरविसेसा-भावसंवर के विशेष 35 पुग्गलजीबाण--पुद्गल और जीवों को 17 भेदा-भेद 17, 18 भेयं-भेद पुग्गलदव्वस्स-पुद्गल द्रव्य की 16 पुढविजलतेउवाउवण'फदी-पृथ्वी-जल- भोत्ता- (भोक्ता) भोगने वाला तेज-वायु और वनस्पति 11 [म] पुण्णं-पुण्य 38 __ मग्गं-मार्ग (पथ) पुण-फिर से 6, 15 मग्गणगुणठाणेहि-मार्गणा और पुरिसायारो-पुरुषाकार ___ गुणस्थानों से पुवस्स-पूर्व के 30 मच्छाणं-मछलियों को फासा-स्पर्श 7 मदि सुद-ओही-मति-श्रुत-अवधि संकाय पत्रिका-२ 31 51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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