Book Title: Shramanvidya Part 2
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 255
________________ २३६ श्रमणविद्या ___33 ___48 53 55 जो-जो 21, 34, 37, 53, 54 णिच्चा-नित्य जोग्ग-योग्य 31 णिच्छयं-निश्चय जोगा-योग से णिच्छयदो-निश्चय से [ ] णिच्छयणयदो-निश्चय नय से 3, 9, 10 णिज्जरा-निर्जरा झाएह-ध्याओ 49, 51 36 झोणं-ध्यान 47, 55, 56 गिम्मणा-मन रहित झाणप्पसिद्धीए-ध्यान की सिद्धि णिद्दिटुं-निर्दिष्ट किया के लिए णियमा-नियम से झाणरहधुरंधरो-ध्यान रूपी रथ का हिरदो-लगे रहते हैं धुरन्धर गिरीहवित्ती- इच्छाओं से रहित झाणे- ध्यान में, णेई-ले जाता है 17 णेओ-जानना चाहिए झेओ-ध्यान करो 15, 37 णेमिचंदमुणिणा-नेमिचन्द्र मुनि के द्वारा 58 [ण] णेयं-जानना चाहिए ण-नहीं 25, 40, 44 णेया-जानना चाहिए 12, 36 ट्रकम्मदेहो-आठ कर्मरूपी शरीर यो-जानो 31 को नष्ट कर दिया 51 णेव-नहीं 17, 18, 43 णट्ठचदुघाइकम्मो-चार घाति कर्मों णो-नहीं . को नष्ट करने वाला 50 णमो-नमस्कार 53.54 त] णाणं-ज्ञान 4, 5, 6, 41, 42, 44 तं-उसको 1, 27, 41, 46,55 णाण-दसण-ज्ञान और दर्शन 6 तत्तियणिरदा-उन तीनों में लीन 57 णाणाखंधप्पदेसदो-नाना स्कन्ध तत्तियमइओ-उन तीनों सहित 39,40 प्रदेश वाला तत्तो- उसके बाद णाणावरणादीणं-ज्ञानावरण आदि का 31 तणुसुत्तधरेण-अल्पश्रुत के धारक णाणिस्स-ज्ञानी के 46 तदा-तब णाम-नाम 38 तदो-इसलिए णादव्वा-जानना चाहिए तम्हा-उससे 24, 40, 47, 57 णायव्वा-जानना चाहिए 35 तल्लद्धोए-उसे पाने के लिए 57 णिओ-अपना 39 तवसुदवदवं-तप, श्रुत और व्रत वाले 57 णिक्कम्मा-कर्म रहित तवेण-तप के द्वारा णिच्चं-नित्य 53 तस्स-उसके 53.54 55 णिच्छयदो-निश्चय से तस्सडणं-उनका झरना णिच्चया-निश्चय से 7 तसजीवा- त्रस जीव 26 संकाय पत्रिका-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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