Book Title: Shramanvidya Part 2
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 259
________________ २४० श्रमणविद्या संठाणभेदतमछाया-संस्थान साहू-साधु, मुनी भेद-तम-छाया ___16 सिद्धा-सिद्ध संति-हैं 7, 20, 24 सिद्धो-सिद्ध संसयविमोहविब्भमविवज्जियं-संशय, सिरसा-शिर से विमोह और विभ्रम रहित, 42 सुद-पुण्णा-श्रुतपूर्ण संसारत्थो-संसारी सुद्ध-शुद्ध संसारी-संसार में रहने वाले सुद्धणया-शुद्धनय से 6, 8, 13 6, स-वह 29, 31, 37, 54 सुद्धभावाणं-शुद्धभावों का सडदि-झरते हैं सुद्धा-शुद्ध सदा-हमेशा सुद्धो-सुद्ध सदि-होने पर सुहअसुहभावजुत्ता-शुभ और अशुभ सदेहपरिमाणो-स्वदेह परिमाण भावों से युक्त सद्दो-शब्द सुहदेहत्थो-शुभ शरीर में स्थित सपुण्णपावा---पुण्य-पाप सहित सुहदुक्ख-सुख और दुःख को सम्म-सम्यक् सम्मचारित्तं-सम्यक् चरित्र सुहाउ-शुभ आयु सुहुमो-सूक्ष्म सम्मत्तं-सम्यक्त्व सुहे-शुभ में सम्मइंसणणाणं-सम्यक्दर्शन-ज्ञान सेसा-शेष समणा-मन सहित सो-वह 2, 3, 17, 18, 20, 21, 25, समब्भसह-अभ्यास करो 32, 34, 52, 53 समये--आगम में सोधयंतु-शुद्ध करें समासवदि-पूर्ण रूप से आता है समासेण-संक्षेप में सोल-सोलह सव्वदा-सर्वदा [ह] सव्वण्हु-सर्वज्ञ हवंति-होते हैं सव्वस्स-सब, सभी हवे-होवे, हो 55,56.57 सव्वाणुट्टाणदाणरिहं-सभी अणुओं __ को स्थान देने में समर्थ हवेइ-है, होता है 27 हु--निश्चय से 154 12, 13 13, 22, सव्वे-सब हेऊ-कारण 34 सादं-साता ,33 होंति-होते हैं साधयदि-साधते हैं 54 56 होइ-होता है ___6,43 सामण्णं-सामान्य सायारमणेयभयं-साकार और होदि-होता है ___26, 29, अनेक भेदों वाला 42 होह-होओ 41 57 संकाय पत्रिका-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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