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47, 52, 54
अवचूरिजुदो दम्ब संगही
२३९ मणपज्जय-मन:पर्यय
लोयालोयस्स-लोकालोक के
51 मा-नहीं
48, 56 लोयायासपदेसे–लोकाकाश के प्रदेश में 22 मिच्छत्ताविरदिपमादजोगकोधादओ
[व] मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, योग, क्रोधादि 30 वंदे-वन्दना करता हूँ मुज्झह - मोह करो
48 वदसमिदीगुत्तीओ-व्रत-समिति-गुप्तियां 35 मुत्ति-मूर्तीक
वदसमिदिगुत्तिरूवं-व्रत, समिति और मुत्ते-मूर्त में
गुप्ति रूप 45 मुत्तो-मूर्त
वट्टइ-है मुणिणाहा-मुनि श्रेष्ठ
वट्टण लक्खो-वतंना लक्षण वाला मुणी-मुनि
वण्ण-वर्ण (रंग) मुयत्त-छोड़कर
ववहारणया-व्यवहारनय से मोक्खस्स.-मोक्ष का
ववहारा-व्यवहार से 3, 6, 7, 9, मोक्खहेउं-मोक्ष का कारण [य]
ववहारो-व्यवहार य-और 3, 12, 13, 20, 21, 24, 26,
वादरसुहमे इंदिय-वादर और सूक्ष्म
एकेन्द्रिय 35, 36, 37, 45, 55
वा-अथवा वि-भी
26, 28, 55 रओ-लीन, रत
विगतिगचदुपंचक्वादो-तीन, चार, रज्जह--राग करो
पांव इन्द्रिय 11 रयणत्तयं-रत्नत्रय
विचित्त-विचित्र रयणत्तयजुत्तो-रत्नत्रय से युक्त
विचितिज्जो-ध्यान करना चाहिए रयणाणं-रस्नों की
विणिवित्ती-निवृत्ति (अलग होना) रस-रस (स्वाद)
विण्णेओ-जानना चाहिए
29 रासीमिव-राशि के समान
विण्णया-जानना चाहिए
13 30 [ल]
वियाण-जानो रूवमप्पणो-आत्मरूप
41 विविहथावरेइंदी-विविध स्थावर रूवादिगुको-रूपादि गुण वाला
एकेन्द्रिय 11 लद्धूण-पाकर
विस्ससोड्ढगई-स्वभाव से ऊर्ध्वगति 2 लोगागासं-लोकाकाश
वीरियचारित्तवरतवायारे-वीयं, चरित्र लोगो-लोक
और श्रेष्ठ तपाचार में 52 लोयग्गठिदा-लोकाग्र स्थित
[स] लोयसिहरत्थो-लोक के शिखर
संखादि-शंख आदि
11 पर स्थित
51 संजुत्ता-संयुक्त
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संकाय पत्रिका-२
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