Book Title: Shramanvidya Part 2
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 254
________________ अवचूरिजुदो दव्वसंगहो 17, 18 3 51 46 चउपाणा-चार प्राण 3 जम्हि --जिसमें च उदसहि-चौदह 13 जवह-जपो चक्खु-चक्षु जस्स-जिसके चदु---चार जह--जैसे चदुधा-चार प्रकार का जहकालेण-जिस समय से चदुविधो-चार प्रकार का जाण-जानो चरणं-चारित्र जाणओ-जानने वाले चरमदेहदो-अन्तिम शरोर से जाणे-जानो 27, चारित्तं-चारित्र 35, 45, 54 जावदियं-जितने 27 चितह-चिन्तन करो 56 जावदिये-जितने में चितंतो-विचार करता हुआ 55 जिणकहियं-जिनकथित चित्तं-चित्त को (हृदय को) 48 जिणक्खादो-जिन द्वारा कथित चिठ्ठह-चेष्टा करो 56 जिणवरवसहेण-जिन श्रेष्ठ वृषभ द्वारा 1 चेदणकम्माण-चेतन कर्मों का जिणवरा-जिन श्रेष्ठ 24 चेदणपरिणामो-चेतन का परिणाम 34 जिणुत्तं-जिन कथित चेदणभावं-चेतनभाव को 9 जिणुत्तो--जिन के द्वारा कहा गया 29 चेदणभावेण-चेतनभाव से 32 जीवमजीव-जीव और अजीव चेदणा-चेतना जीवलक्खणं-जीव-स्वरूप चेदा-आत्मा 10, 57 जीवा-जोव चेदि-और इस प्रकार 36 जीवाजीवविसेसा-जीव और अजीव [छ] के विशेष छदमत्थाणं-छद्मस्थों के 44 जीवाजीवप्पभेददो-जीव और छप्पण-छह, पाँच 49 अजीव के भेद से छन्भेयं-छह प्रकार का जीवादिसद्दहणं-जीवादि का श्रद्धान 41 छाया-छाया जीवादीणं-जीवादि को 19 [ज] जीव-जीव में 7,25 ज-जो 31, 43, 46, 47, 55, 58 जीवो-जीव 2,3 जपह-जल्पन करो, 56 जुजइ-लगाता है जइ-यदि 48 जुगवं-एक साथ जदा-जब 55 जूयं-तुमलोग (तुम सब) जदिवरवसहो-सब मुनियों में श्रेष्ठ 53 जे-ये, जो 22, 28 जदो-जिस कारण से 24 जेण-जिसके द्वारा 1, 29, 32, 36, 56 जम्हा-जिससे 24, 44,57 जेव्ह-जैनमत में 19 23 23 18 NAM संकाय पत्रिका-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262